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परिशिष्ट
६०५ और क्रमाक्रमभावों से जो मेचक होकर। द्रव्य और पर्यायमयी चिवस्तु लोक में ॥२६४।।
(वसंततिलका) नैकांतसंगतदृशा स्वयमेव वस्तुतत्त्वव्यवस्थितिमिति प्रविलोकयन्तः। स्याद्वादशुद्धिमधिकामधिगम्य संतो ज्ञानी भवंति जिननीतिमलंघयन्तः ।।२६५।।
(रोला) अनेकान्त की दिव्यदृष्टि से स्वयं देखते।
वस्तुतत्त्व की उक्त व्यवस्था अरे सन्तजन ।। स्याद्वाद की अधिकाधिक शुद्धि को लख अर।
नहीं लाँघकर जिननीति को ज्ञानी होते ।।२६५।। इस लोक में स्वयं की जीवत्वादि अनेक शक्तियों से पूर्णत: परिपूर्ण होने पर भी जो भाव (आत्मा) ज्ञानमात्रता को नहीं छोड़ता; वह भाव (आत्मा) पूर्वोक्त प्रकार से क्रमरूप और अक्रमरूप विद्यमान होने से अनेकाकार द्रव्य-पर्यायमय चेतन वस्तु है।
अनेकान्तसंगत दृष्टि के द्वारा अनेकान्तात्मक वस्तुतत्त्व की व्यवस्था को स्वयमेव देखते हए स्याद्वाद की अत्यधिक शुद्धि को जानकर जिनवरदेव की नीति का उल्लंघन न करते हुए सत्पुरुष ज्ञानी (ज्ञानस्वरूप) होते हैं।
उक्त छन्दों में आचार्यदेव यही कहना चाहते हैं कि यह भगवान आत्मा अक्रमवर्ती गुणों और क्रमवर्ती पर्यायों तथा जीवत्वादि अनंत शक्तियों का संग्रहालय द्रव्य-पर्यायात्मक चैतन्यवस्तु है। यह चैतन्यवस्तु अनंत गुणात्मक और उनके निर्मल परिणमन से संयुक्त होने पर भी अपने ज्ञानमात्रपने को नहीं छोड़ती, अपने जाननस्वभाव को नहीं छोड़ती।
उक्त अनेकान्तात्मक ज्ञानमात्र आत्मवस्तु और उसकी परिणमन व्यवस्था का स्वरूप भलीभाँति जानकर ज्ञानीजन स्याद्वादमयी जिननीति को, जिनेन्द्रभगवान कथित नीति को नहीं छोड़ते।
तात्पर्य यह है कि हमें स्याद्वादमयी जिननीति का अनुसरण करते हुए अनेकान्तात्मक ज्ञानमात्र आत्मवस्तु को जानकर उसमें अपनापन स्थापित कर; उसी में जम जाना, रम जाना चाहिए।
आचार्य अमृतचन्द्र ने आत्मख्याति के परिशिष्ट के आरंभ में ही यह प्रतिज्ञा की थी कि अब स्याद्वाद की शुद्धि के लिए वस्तुतत्त्व की व्यवस्था और उपाय-उपेय भाव पर भी थोड़ा-बहुत विचार करते हैं।
२४७ वें कलश में समागत उक्त कथन का तो यही अर्थ अभीष्ट है कि वे स्याद्वा की शुद्धि के लिए वस्तुतत्त्व की व्यवस्था और उपाय-उपेयभाव की चर्चा करना चाहते हैं।
उक्त कथन के आधार पर तो उसमें समागत दो अधिकारों के नाम वस्तुतत्त्वव्यवस्था अधिकार और उपायोपेयाधिकार होना चाहिए; क्योंकि स्याद्वाद की स्थापना तो वे दोनों अधिकारों में ही करते देखे जाते हैं; तथापि कलश टीकाकार और नाटक समयसारकार ने इन अधिकारों के नाम