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________________ ५९८ समयसार भावशक्ति यह बताती है कि आत्मा रागादि विकारी भावों के षट्कारकों से रहित है और क्रियाशक्ति यह बतलाती है कि सम्यग्दर्शनादि निर्मल पर्यायों के षट्कारकों से सहित है। ३३वीं शक्ति का नाम भी भावशक्ति है और इस ३९वीं शक्ति का नाम भी भावशक्ति ही है; नाम एक-सा होने पर भी दोनों में मूलभूत अन्तर यह है कि ३३वीं भावशक्ति में यह कहा था कि प्रत्येक द्रव्य अपनी सुनिश्चित वर्तमान पर्याय से युक्त होता ही है और इस ३९वीं भावशक्ति में यह बताया जा रहा है कि यह भगवान आत्मा कारकों की क्रिया से निरपेक्ष है। भावादि छह शक्तियों के विवेचन से यह स्पष्ट हआ था कि प्रत्येक द्रव्य की प्रत्येक पर्याय पर की अपेक्षा बिना स्वयं की योग्यता से स्वसमय में प्रगट होती ही है; इसप्रकार वह परकारकों से निरपेक्ष है। और अब इस ३९वीं भावशक्ति में प्रत्येक समय की प्रत्येक पर्याय को अभिन्न षट्कारकों से भी निरपेक्ष बताया जा रहा है। ध्यान रहे, यह अभिन्न षट्कारकों से निरपेक्षता विकारी पर्याय संबंधी ही ग्रहण करना; क्योंकि सम्यग्दर्शनादि निर्मल पर्यायों से सापेक्षता अगली क्रियाशक्ति में स्पष्ट की जायेगी। यद्यपि ३९वीं शक्ति में विकारी-अविकारी पर्याय संबंधी कोई उल्लेख नहीं है; सामान्यरूप से ही अभिन्न षट्कारकों से निरपेक्षता का कथन है; तथापि ४०वीं शक्ति में निर्मलपर्याय संबंधी अभिन्नषट्कारकों की सापेक्षता का कथन होने से यह सहज ही फलित हो जाता है कि ३९वीं शक्ति में विकारी पर्यायों की निरपेक्षता ही समझना चाहिए। इसप्रकार इन भावादि शक्तियों में पर से निरपेक्षता और विकारी पर्यायों से निरपेक्षता बताकर निर्मल पर्यायों संबंधी षट्कारकों की सापेक्षता का निरूपण है। इसके बाद षट्कारकों संबंधी कर्मशक्ति, कर्ताशक्ति, करणशक्ति, सम्प्रदानशक्ति, अपादानशक्ति और अधिकरणशक्ति - इन छह शक्तियों का निरूपण होगा और उसके बाद संबंधशक्ति की चर्चा करेंगे। इसप्रकार हम देखते हैं कि भाव-अभावादि छह शक्तियों में पर के साथ कारकता का निषेध और इस भावशक्ति में विकार के साथ कारकता का निषेध करके क्रियाशक्ति में निर्मल परिणमन के साथ कारकता का संबंध स्वीकार कर उसका स्वरूप स्पष्ट किया गया है। तात्पर्य यह है कि यह भगवान आत्मा न तो पर का और न रागादि भावों का कर्ता है और न पर और रागादि भावों का कर्म ही है; इसीप्रकार उनका करण भी नहीं है, सम्प्रदान भी नहीं है, अपादान भी नहीं है और अधिकरण भी नहीं है। तात्पर्य यह है कि इस भगवान आत्मा का पर व रागादि के साथ किसी भी प्रकार का कोई भी संबंध नहीं है। इसीप्रकार ये परपदार्थ व विकारी भाव भी आत्मा के कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण नहीं हैं और न इनका आत्मा के साथ कोई संबंध ही है। आत्मोन्मुखी निर्मल परिणमन के साथ आत्मा का उक्त कारकों रूप निर्विकल्प संबंध अवश्य है। उक्त भावशक्ति और क्रियाशक्ति के प्रकरण में कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण संबंधी कारकों की चर्चा बार-बार आई है; अत: अब आगे उक्त षट्कारकों संबंधी छह
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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