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परिशिष्ट शक्तियों की चर्चा की जा रही है और अन्त में इसका कोई संबंधी है भी या नहीं? यदि है तो कौन है - इस बात का निर्णय करने के लिए संबंधशक्ति की चर्चा करेंगे।
प्राप्यमाणसिद्धरूपभावमयी कर्मशक्तिः । भवत्तारूपसिद्धरूपभावभावकत्वमयी कर्तृत्वशक्तिः ।
४१-४२. कर्मशक्ति और कर्तृत्वशक्ति ४१वीं कर्मशक्ति और ४२वीं कर्तृत्वशक्ति को आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है -
कर्मशक्ति प्राप्यमाणसिद्धरूपभावमयी है और कर्तृत्वशक्ति होनेरूप और सिद्धरूप भाव के भावकत्वमयी है।
भगवान आत्मा में जीवत्वादि अनंत शक्तियों में एक कर्म नाम की शक्ति भी है और एक कर्तृत्व नाम की शक्ति भी है। इन शक्तियों के कारण ही यह भगवान आत्मा अपने सम्यग्दर्शनादि निर्मल परिणामों को प्राप्त करता है और उन्हें करता भी है। कर्मशक्ति के कारण प्राप्त करता है और कर्तृत्वशक्ति के कारण उन्हें करता है।
यह भगवान आत्मा न तो पर को प्राप्त करता है और न पर का कर्ता ही है। इसीप्रकार रागादिविकारी भावों को प्राप्त करे या करे - ऐसी भी कोई शक्ति आत्मा में नहीं है। हाँ, अपने सम्यग्दर्शनादि निर्मल परिणामों को प्राप्त करने और करने की शक्ति इसमें अवश्य है।
निर्मल परिणामों को करने की शक्ति का नाम कर्तृत्वशक्ति है और इन्हें प्राप्त करने की शक्ति का नाम कर्मशक्ति है। तात्पर्य यह है कि अपने निर्मल परिणामों को करने या प्राप्त करने के लिए इस भगवान आत्मा को पर की ओर झाँकने की कोई आवश्यकता नहीं है।
यहाँ कर्म शब्द का प्रयोग न तो ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्मों के अर्थ में हुआ है और न रागादि भावकर्मों के अर्थ में ही हआ है तथा कर्म शब्द का अर्थ निर्मल परिणमनरूप कार्य भी नहीं है।
यहाँ कर्म शब्द का प्रयोग आत्मा की अनादि-अनंत शक्तियों में अथवा यहाँ प्रतिपादित ४७ शक्तियों में से एक कर्म नामक शक्ति के अर्थ में है अथवा कर्ता, कर्म, करण आदि कारकों में समागत कर्म के अर्थ में है। ४०वीं कर्तृत्वशक्ति में आत्मा अपने निर्मल परिणामों का कर्ता है - यह बताया गया है और २१वीं अकर्तृत्वशक्ति में आत्मा रागादि विकारी भावों का अकर्ता है - यह बताया गया था। ___ इसप्रकार इन दोनों शक्तियों के विवेचन में यह स्पष्ट किया गया है कि इस भगवान आत्मा में एक कर्म नाम की शक्ति ऐसी है कि जिसके कारण यह आत्मा स्वयं के निर्मल परिणामों को प्राप्त करता है और एक कर्तृत्व नाम की शक्ति ऐसी भी है कि जिसके कारण यह आत्मा स्वयं के निर्मल परिणामों को करे अथवा उनका कर्तृत्व धारण करे।
स्वयं ही कर्ता और स्वयं ही कर्म - इसप्रकार कर्ता-कर्म का अनन्यपना है। तात्पर्य यह है कि