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________________ ५९६ समयसार अपने उपादान के अनुसार जैसी होनी होती है; वह स्वयं नियम से उसी समय, वैसी ही होती है। उसमें परपदार्थ की रंचमात्र भी अपेक्षा नहीं होती।" सभी पदार्थों पर घटित होनेवाली इन भाव-अभावादि शक्तियों की चर्चा आत्मख्याति में आत्मा की विशिष्ट शक्तियों के संदर्भ में ही हुई है। सैंतालीस शक्तियों में आरंभिक गुण-शक्तियों की चर्चा में आत्मा के ज्ञानस्वभाव का स्वरूप स्पष्ट किया गया है। तात्पर्य यह है कि आत्मा स्व और पर दोनों को देखता-जानता है, दोनों उसके ज्ञान-दर्शन दर्पण में झलकते हैं; किसी को देखने-जानने के लिए उसे उन ज्ञेय पदार्थों के पास नहीं जाना पड़ता और न उन ज्ञेय पदार्थों को आत्मा के समीप ही आना पड़ता है। सहज ही ज्ञेय-ज्ञायक संबंध रहता है। ___ न केवल अपने आत्मा में स्व और पर को जानने की शक्ति है, अपितु परजीवों के ज्ञान का ज्ञेय बनने की भी शक्ति है। इसप्रकार यह आत्मा स्व और पर - दोनों को जानता है और स्व और पर - दोनों के द्वारा जाना भी जाता है। पर पदार्थों में थोड़े-बहुतों को ही नहीं; अपितु जगत के सम्पूर्ण पदार्थों को, उनके अनन्त गुणों को और उनकी अनंतानंत पर्यायों को एक समय में एक साथ जानने की सामर्थ्य इसमें है। इसप्रकार आरंभिक शक्तियों में अपने आत्मा का ज्ञाता-दृष्टा स्वरूप स्पष्ट करने के उपरान्त आत्मा के प्रदेशों की स्थिति के संदर्भ में अनेक शक्तियों का विवेचन किया गया है। इसके बाद धर्म-शक्तियों के विवेचन में परस्पर विरुद्ध प्रतीत होनेवाले धर्मयुगलों की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है और अब इन भाव-अभाव आदि स्वभावरूप शक्तियों द्वारा यह स्पष्ट किया जा रहा है कि इस भगवान आत्मा में प्रतिसमय जो भी परिणमन हो रहा है, उसे करने की पूरी सामर्थ्य उसके स्वभाव में ही विद्यमान है। इसके लिए उसे पर के सहयोग की रंचमात्र भी आवश्यकता नहीं है। यदि किसी को यह आशंका हो कि आत्मा में जिस समय जो पर्याय होनी है, यदि वह उस समय नहीं हुई तो क्या होगा? उक्त आशंका का यही समाधान है कि भगवान आत्मा में भाव नाम की एक ऐसी शक्ति है, जिसके कारण जो पर्याय जिस समय होनी है, वह पर्याय उस समय होगी ही। इसीप्रकार यदि यह आशंका हो कि जो पर्याय इस समय नहीं होनी है, यदि वह पर्याय हो गई तो क्या होगा? इसका समाधान अभावशक्ति में है। अभावशक्ति के कारण जो पर्याय जिस समय नहीं होनी है, वह पर्याय उस समय नियम से नहीं होगी। भावशक्ति का कार्य है कि विवक्षित पर्याय स्वसमय पर हो ही और अभावशक्ति का कार्य है कि अविवक्षित पर्याय उस समय किसी भी स्थिति में न हो। अब प्रश्न उपस्थित होता है यदि विद्यमान पर्याय का अगले समय में अभाव ही न हो तो फिर नई पर्याय कैसे होगी ? आचार्य कहते हैं कि आत्मा में भावाभाव नाम की एक शक्ति ऐसी भी है कि जिसके कारण विद्यमान पर्याय का अगले समय में नियम से अभाव होगा ही। इसीप्रकार यदि यह प्रश्न हो कि यदि अगले समय में जो पर्याय आनी थी, यदि वह पर्याय अगले
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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