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________________ ५६८ ( शार्दूलविक्रीडित ) प्रादुर्भाव - विराम - मुद्रित - वहज्ज्ञानांश - नानात्मना निर्ज्ञानात्क्षणभङ्गसङ्गपतित: प्राय: पशुर्नश्यति । स्याद्वादी तु चिदात्मना परिमृशंश्चिद्वस्तु नित्योदितं टंकोत्कीर्णघनस्वभावमहिम ज्ञानं भवन् जीवति ।। २६० ।। टंकोत्कीर्णविशुद्धबोधविसराकारात्मतत्त्वाशया दाञ्छत्युच्छलदच्छचित्परिणतेर्भिन्नं पशुः किंचन् । ज्ञानं नित्यमनित्यतापरिगमेऽप्यासादयत्युज्वलं स्याद्वादी तदनित्यतां परिमृशश्चिस्तुवृत्तिक्रमात् । । २६१ । । अब नित्यानित्य संबंधी कलशों की चर्चा करते हैं; जिनका पद्यानुवाद इसप्रकार है ( हरिगीत ) - उत्पाद - व्यय के रूप में बहते हुए परिणाम लख । क्षणभंग के पड़ संग निज का नाश करते अज्ञजन ।। चैतन्यमय निज आतमा क्षणभंग है पर नित्य भी - यह जानकर जीवित रहें नित स्याद्वादी विज्ञजन ॥ २६० ॥ है बोध जो टंकोत्कीर्ण विशुद्ध उसकी आश से । चिपरिणति निर्मल उछलती से सतत् इनकार कर ।। अज्ञजन हों नष्ट किन्तु स्याद्वादी विज्ञजन । अनित्यता में व्याप्त होकर नित्य का अनुभव करें ।। २६१ ।। समयसार एकान्तवादी अज्ञानी उत्पाद - व्यय से लक्षित और परिणमित होते हुए ज्ञान की अंशरूप अनेकता के द्वारा ही आत्मा का निर्णय करता हुआ क्षणभंगुरता के मोह में पड़कर प्राय: को प्राप्त होता है; किन्तु स्याद्वादी चैतन्यात्मक निज आत्मवस्तु को नित्योदित और टंकोत्कीर्ण ज्ञानघनरूप अनुभव करता हुआ जीवित रहता है। एकान्तवादी अज्ञानी टंकोत्कीर्ण विशुद्धज्ञानविस्ताररूप सर्वथा नित्य आत्मतत्त्व की आशा से उछलती हुई निर्मल चैतन्यपरिणति से भिन्न आत्मतत्त्व चाहता है; किन्तु ऐसा आत्मा तो कहीं है ही नहीं । स्याद्वादी तो चैतन्यवस्तु की परिणति के द्वारा आत्मा की अनित्यता को अनुभव करता हुआ नित्य ज्ञान को अनित्यता से व्याप्त होने पर भी उज्ज्वल अनुभव करता है । उक्त सम्पूर्ण कथन का मर्म यह है कि आत्मवस्तु नित्य भी है और अनित्य भी है; वह नित्यानित्य है। ऊपर-ऊपर से मात्र पर्यायों को देखनेवाले जैनी अनित्यैकान्तवादी बौद्धों के समान आत्मा को सर्वथा अनित्य मान लेते हैं । इसीप्रकार पर्यायों की अनित्यता को अनिष्टबुद्धि से देखनेवाले जैनी नित्यैकान्तवादी सांख्यों के समान आत्मा को सर्वथा नित्य ही मान लेते हैं।
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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