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जिनवर कहें बस ज्ञान-दर्शन-चरित ही मग मुक्ति
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बस इसलिए अनगार या सागार लिंग को त्यागकर ।
जुड़ जा स्वयं के ज्ञान-दर्शन- चरणमय शिवपंथ में ।। ४११ । ।
बहुत प्रकार के पाखण्डी ( मुनि) लिंगों अथवा गृहस्थ लिंगों को धारण करके मूढ़जन यह कहते हैं कि यह लिंग मोक्षमार्ग है।
परन्तु लिंग मोक्षमार्ग नहीं है; क्योंकि अरिहंतदेव लिंग को छोड़कर अर्थात् लिंग पर से दृष्टि हटाकर दर्शन - ज्ञान-चारित्र का सेवन करते हैं।
समयसार
मुनियों और गृहस्थों के लिंग (चिह्न) मोक्षमार्ग नहीं; क्योंकि जिनदेव तो दर्शन-ज्ञानचारित्र को मोक्षमार्ग कहते हैं।
इसलिए गृहस्थों और मुनियों द्वारा ग्रहण किये गये लिंगों को छोड़कर उनमें से एकत्वबुद्धि तोड़कर मोक्षमार्गरूप दर्शन-ज्ञान- चारित्र में स्वयं को लगाओ ।
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इन गाथाओं का भाव आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है -
" कितने ही लोग अज्ञान से द्रव्यलिंग को मोक्षमार्ग मानते हुए मोह से द्रव्यलिंग को ही धारण करते हैं, परन्तु यह ठीक नहीं है; क्योंकि सभी अरिहंत भगवन्तों के शुद्धज्ञानमयता होने से द्रव्यलिंग के आश्रयभूत शरीर के ममत्व का त्याग होता है । इसलिए शरीराश्रित द्रव्यलिंग के त्याग से सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र की मोक्षमार्गरूप से उपासना देखी जाती है।
अथैतदेव साधयति - न खलु द्रव्यलिंगं मोक्षमार्गः, शरीराश्रितत्वे सति परद्रव्यत्वात् । दर्शनज्ञानचारित्राण्येव मोक्षमार्गः, आत्माश्रितत्वे सति स्वद्रव्यत्वात् ।
यत् एवम् - यतो द्रव्यलिंगं न मोक्षमार्गः, ततः समस्तमपि द्रव्यलिंगं त्यक्त्वा दर्शनज्ञानचारित्रेष्वेव, मोक्षमार्गत्वात्, आत्मा योक्तव्य इति सूत्रानुमति: ।
( अनुष्टुभ् )
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दर्शनज्ञानचारित्रत्रयात्मा तत्त्वमात्मनः ।
एक एव सदा सेव्यो मोक्षमार्गो मुमुक्षुणा ।। २३९ ।।
वस्तुत: बात यह है कि द्रव्यलिंग मोक्षमार्ग नहीं है; क्योंकि वह द्रव्यलिंग शरीराश्रित होने से परद्रव्य है । दर्शन - ज्ञान - चारित्र ही मोक्षमार्ग है; क्योंकि वे आत्माश्रित होने से स्वद्रव्य हैं ।
चूँकि द्रव्यलिंग मोक्षमार्ग नहीं है; इसलिए सभी द्रव्यलिंगों का त्याग करके दर्शन -ज्ञानचारित्र में ही स्थित होओ। सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र ही मोक्षमार्ग होने से इनमें ही आत्मा को लगाना योग्य है • ऐसी सूत्र की अनुमति है । "
उक्त चारों गाथाओं का सार यह है कि आत्मा के आश्रय से आत्मा में ही उत्पन्न होनेवाला दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप भावलिंग ही सच्चा मोक्षमार्ग है; शरीर की नग्नदिगम्बर अवस्था और महाव्रतादि के शुभभावरूप द्रव्यलिंग मोक्ष का मार्ग नहीं है; उसे तो भावलिंग का अनिवार्य