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सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार (लिंग) मोक्ष का कारण नहीं है।
तात्पर्य यह है कि जब शुद्धज्ञानस्वभावी आत्मा के देह ही नहीं है; तब फिर देहमय चिह्न (लिंग) मुक्ति का कारण कैसे हो सकता है ? अर्थात् भावलिंगी संतों के भी नग्न दिगम्बरदशा मुक्ति का कारण नहीं है। मुक्ति का कारण तो एकमात्र निश्चयरत्नत्रय ही है।
यद्यपि यह सत्य है कि नग्न दिगम्बरदशा धारण किये बिना मुक्ति की प्राप्ति नहीं होती, तथापि देह की नग्नता मुक्ति का कारण नहीं है। देह की नग्नता के साथ मिथ्यात्व और तीन कषाय के
सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र हैं; वे ही मुक्ति के कारण हैं। जो बात विगत कलश में कही गई है; उसी बात को अब गाथाओं के माध्यम से विस्तार से स्पष्ट करते हैं। गाथाओं का पद्यानुवाद इसप्रकार है -
(हरिगीत) ग्रहण कर मुनिलिंग या गृहिलिंग विविध प्रकार के। यह लिंग ही है मुक्तिमग यह कहें कतिपय मूढजन ।।४०८।। पर मुक्तिमग ना लिंग क्योंकि लिंग तज अरिहंत जिन। निज आत्म अरु सद्-ज्ञान-दर्शन-चरित का सेवन करें।।४०९।।
ण वि एस मोक्खमग्गो पासंडीगिहिमयाणि लिंगाणि। दंसणणाणचरित्ताणि मोक्खमग्गं जिणा बेंति ॥४१०।। तम्हा जहित्तु लिंगे सागारणगारएहिं वा गहिदे। दंसणणाणचरित्ते अप्पाणं जुंज मोक्खपहे ।।४११।।
पाषण्डिलिंगानि वा गृहिलिंगानि वा बहुप्रकाराणि। गृहीत्वा वदन्ति मूढा लिंगमिदं मोक्षमार्ग इति ।।४०८।। न तु भवति मोक्षमार्गो लिंगं यद्देहनिर्ममा अर्हतः। लिंगं मुक्त्वा दर्शनज्ञानचारित्राणि सेवन्ते ।।४०९।। नाप्येष मोक्षमार्गः पाषंडिगहिमयानि लिंगानि। दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गं जिना ब्रुवन्ति ।।४१०।। तस्मात् जहित्वा लिंगानि सागारैरनगारकैर्वा गृहीतानि ।
दर्शनज्ञानचारित्रे आत्मानं युंक्ष्व मोक्षपथे।।४११।। केचिद्रव्यलिंगमज्ञानेन मोक्षमार्ग मन्यमानाः संतो मोहेन द्रव्यलिंगमेवोपाददते । तदनुपपन्नम्; सर्वेषामेव भगवतामर्हदेवानां, शुद्धज्ञानमयत्वे सति द्रव्यलिंगाश्रयभूतशरीरममकारत्यागात्, तदाश्रितद्रव्यलिंगत्यागेन दर्शनज्ञानचारित्राणां मोक्षमार्गत्वेनोपासनस्य दर्शनात् ।
बस इसलिए गृहिलिंग या मुनिलिंग ना मग मुक्ति का।