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________________ ५३२ समयसार शास्त्र ज्ञान नहीं है, क्योंकि शास्त्र कुछ जानता नहीं है; इसलिए ज्ञान अन्य है और शास्त्र अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं। शब्द ज्ञान नहीं है; क्योंकि शब्द कुछ जानता नहीं है; इसलिए ज्ञान अन्य है और शब्द अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं। रूप ज्ञान नहीं है; क्योंकि रूप कुछ जानता नहीं है; इसलिए ज्ञान अन्य है और रूप अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं। _____ वर्ण ज्ञान नहीं है; क्योंकि वर्ण कुछ जानता नहीं है। इसलिए जान अन्य है और वर्ण अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं। ___ गंध ज्ञान नहीं है; क्योंकि गंध कुछ जानती नहीं है; इसलिए ज्ञान अन्य है और गंध अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं। रस ज्ञान नहीं है; क्योंकि रस कुछ जानता नहीं है। इसलिए ज्ञान अन्य है और रस अन्य हैऐसा जिनदेव कहते हैं। ___ स्पर्श ज्ञान नहीं है; क्योंकि स्पर्श कुछ जानता नहीं है; इसलिए ज्ञान अन्य है और स्पर्श अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं। ___ कर्म ज्ञान नहीं है; क्योंकि कर्म कुछ जानता नहीं है; इसलिए ज्ञान अन्य है और कर्म अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं। न श्रुतं ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानश्रुतयोर्व्यतिरेकः । न शब्दो ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानशब्दयोर्व्यतिरेकः । न रूपं ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानरूपयोर्व्यतिरेकः । न वर्णो ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानवर्णयोर्व्यतिरेकः । न गंधो ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानगंधयोर्व्यतिरेकः। न रसो ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानरसयोर्व्यतिरेकः । न स्पर्शो ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानस्पर्शयोर्व्यतिरेकः । न कर्म ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानकर्मणोर्व्यतिरेकः। न धर्मो ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानधर्मयोर्व्यतिरेकः । नाधर्मो ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानाधर्मयोर्व्यतिरेकः।। धर्म ज्ञान नहीं है; क्योंकि धर्म कुछ जानता नहीं है; इसलिए ज्ञान अन्य है और धर्म अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं। अधर्म ज्ञान नहीं है। क्योंकि अधर्म कुछ जानता नहीं है; इसलिए ज्ञान अन्य है और अधर्म अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं। __ काल ज्ञान नहीं है; क्योंकि काल कुछ जानता नहीं है; इसलिए ज्ञान अन्य है और काल अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं। आकाश ज्ञान नहीं है; क्योंकि आकाश कुछ जानता नहीं है; इसलिए ज्ञान अन्य है और आकाश अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं। अध्यवसान ज्ञान नहीं है; क्योंकि अध्यवसान अचेतन है; इसलिए ज्ञान अन्य है और
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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