SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 523
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयसार ५०४ इसप्रकार प्रतिक्रमणकल्प को प्रस्तुत करने के उपरान्त आत्मख्याति में आलोचनाकल्प के ४९ भंग प्रस्तुत किये हैं; जो इसप्रकार हैं - ___१. मैं वर्तमान में मन-वचन-काय से कर्म न तो करता हूँ, न कराता हूँ और न अन्य करते हुए का अनुमोदन करता हूँ। २. मैं वर्तमान में मन-वचन से कर्म न तो करता हूँ, न कराता हूँ और न अन्य करते हुए का अनुमोदन करता हूँ। __३. मैं वर्तमान में मन-काय से कर्म न तो करता हूँ, न कराता हूँ और न अन्य करते हुए का अनुमोदन करता हूँ। ४. मैं वर्तमान में वचन-काय से कर्म न तो करता हूँ, न कराता हूँ और न अन्य करते हुए का अनुमोदन करता हूँ। ..मैं वर्तमान में मन से कर्म न तो कस्ता हूँ, कसता हूँ और न अन्य करते हुए का अनुमोदन करता हूँ। ६. मैं वर्तमान में वचन से कर्म न तो करता हूँ, न कराता हूँ और न अन्य करते हुए का अनुमोदन करता हूँ। चेति ।६। न करोमि, न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, कायेन चेति ।७। न करोमि, न कारयामि, मनसा च वाचा च कायेन चेति ।८। न करोमि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा च वाचा च कायेन चेति ।९। न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा च वाचा च कायेन चेति ।१०। न करोमि, न कारयामि, मनसा च वाचा चेति ।११। न करोमि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा च वाचा चेति ।१२। न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा च वाचा चेति ।१३। न करोमि, न कारयामि, मनसा च कायेन चेति ।१४। न करोमि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा च कायेन चेति ।१५। न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा च कायेन चेति ।१६। न करोमि, न कारयामि, वाचा च कायेन चेति ।१७। न करोमि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, वाचा च कायेन चेति ।१८। न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, वाचा च कायेन चेति ।१९। न करोमि, न कारयामि, ७. मैं वर्तमान में काय से कर्म न तो करता हूँ, न कराता हूँ और न अन्य करते हुए का अनुमोदन करता हूँ। ८. मैं वर्तमान में मन-वचन-काय से कर्म न तो करता हूँ, न कराता हूँ। ९. मैं वर्तमान में मन-वचन-काय से कर्म न तो करता हूँ और न अन्य करते हुए का अनुमोदन करता हूँ। १०. मैं वर्तमान में मन-वचन-काय से कर्म न तो कराता हूँ और न अन्य करते हुए का अनुमोदन करता हूँ। ११. मैं वर्तमान में मन-वचन से कर्म न तो करता हूँ, न कराता हूँ।
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy