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सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार
४९९ इन सबको परस्पर में संयुक्त करने से, गुणनफल निकालने से कुल मिलाकर प्रतिक्रमणकल्प के ४९, आलोचनाकल्प के ४९ और प्रत्याख्यानकल्प के ४९ - इसप्रकार कुल मिलाकर १४७ भंग बन जाते हैं।
इसप्रकार इस कलश में मन-वचन-काय और कृत-कारित-अनुमोदना से त्रिकाल में किये गये समस्त शुभाशुभभावों का त्याग करके परमनेष्कर्म्य भाव में स्थित होने की कामना की गई है।
इसप्रकार प्रतिक्रमण, आलोचना और प्रत्याख्यान के इन ४९-४९ भंगों को याद रखना यद्यपि सरल नहीं है; तथापि इन्हें निम्न सूत्र के माध्यम से आसानी से याद रखा जा सकता है।
एक त्रिसंयोगी, तीन द्विसंयोगी और तीन असंयोगी - इसप्रकार मन-वचन-काय के अधिक से अधिक ७ भंग बनते हैं, जो इसप्रकार हैं - १. मन-वचन-काय २. मन-वचन ३. मन-काय ४. वचन-काय ५. मन ६. वचन ७. काय। __इसीप्रकार कृत-कारित-अनुमोदना के भी अधिक से अधिक ७ भंग बनते हैं, जो इसप्रकार हैं
१. कृत-कारित-अनुमोदना २. कृत-कारित ३. कृत-अनुमोदना ४. कारित-अनुमोदना ५. कृत ६. कारित ७. अनुमोदना।
यदहमकार्ष, यदचीकर, यत्कुर्वतमप्यन्यं समन्वज्ञासिष, मनसा च वाचाच कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ।१। यदहमकार्षं, यदचीकर, यत्कुर्वतमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, मनसा च वाचा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ।२। यदहमकाएं, यदचीकर, यत्कुर्वतमप्यन्यं, समन्वज्ञासिषं, मनसा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ।३। यदहमकार्ष, यदचीकर, यत्कुर्वतमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं, ___ मन-वचन-काय आदि ७ भंगों में से प्रत्येक को कृत-कारित-अनुमोदनादि ७ भंगों पर घटित करने पर ४९ भंग हो जायेंगे। जैसे -
१. मैंने पूर्व में मन-वचन-काय से जो दुष्कृत किया, कराया और अनुमोदन किया; वह मिथ्या हो।
२. मैंने पूर्व में मन-वचन-काय से जो दुष्कृत किया और कराया; वह मिथ्या हो। ३. मैंने पूर्व में मन-वचन-काय से जो दृष्कृत किया और अनुमोदन किया; वह मिथ्या हो। ४. मैंने पूर्व में मन-वचन-काय से जो दुष्कृत कराया और अनुमोदन किया; वह मिथ्या हो।
मैंने पूर्व में मन-वचन-काय से जो दुष्कृत किया; वह मिथ्या हो। ६. मैंने पूर्व में मन-वचन-काय से जो दुष्कृत कराया; वह मिथ्या हो। ७. मैंने पूर्व में मन-वचन-काय से जो दुष्कृत अनुमोदन किया; वह मिथ्या हो। जिसप्रकार मन-वचन-काय के ये ७ भंग बनते हैं; उसीप्रकार मन-वचन, मन-काय, वचन-काय तथा मन, वचन और काय - इनमें से प्रत्येक के सात-सात भंग बनेंगे; इसप्रकार ४९ भंग बन जायेंगे। ये ४९ भंग प्रतिक्रमण के हैं, इसीप्रकार ४९ भंग आलोचना के एवं ४९ भंग प्रत्याख्यान के बन जायेंगे।
इसप्रकार इन १४७ भंगों का पृथक्-पृथक् उल्लेख करते हुए इनके त्याग की भावना