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समयसार सम्पूर्ण कर्मफल से संन्यास की भावना को नचाकर, बारम्बार भाकर; स्वभावभूत भगवती ज्ञानचेतना को ही सदा नचाना चाहिए, भाना चाहिए।"
इसप्रकार इन गाथाओं में यही कहा गया है कि कर्मचेतना और कर्मफलचेतना - ये दोनों अज्ञानचेतनारूप होने से हेय हैं और ज्ञानचेतना परम उपादेय है।
विगत गाथाओं और उनकी आत्मख्याति टीका में भगवती ज्ञानचेतना को नित्य नचाने की प्रेरणा दी गई है। उक्त प्रेरणा को स्वयं ही अपनाकर अब यहाँ आचार्य अमृतचन्द्र पद्य और गद्य के माध्यम से ज्ञानचेतना का नृत्य प्रस्तुत करते हैं; जिसमें वे भूत, भविष्य और वर्तमानकालीन कर्मचेतना संबंधी भूलों को प्रतिक्रमणकल्प, आलोचनाकल्प और प्रत्याख्यानकल्प के माध्यम से मन-वचन-काय और कृत-कारित-अनुमोदना से त्याग करने की बारम्बार भावना भाते हैं और १४८ कर्म प्रकृतियों के फल के त्यागरूप कर्मफलचेतना संबंधी भूलों के त्याग की भावना भाते हैं।
सर्वप्रथम वे तीनों कल्पों की प्रस्तावना एक आर्या छन्द द्वारा प्रस्तुत करते हैं, जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है -
(आर्या) कृतकारितानुमननैस्त्रिकालविषयं मनोवचनकायैः। परिहृत्य कर्म सर्वं परमं नैष्कर्म्यमवलम्बे ।।२२५।।
(रोला) भूत भविष्यत वर्तमान के सभी कर्म कृत।
कारित अर अनुमोदनादि मैं सभी ओर से ।। सबका कर परित्याग हृदय से वचन-काय से।
__ अवलम्बन लेता हूँ मैं निष्कर्मभाव का ।।२२५ ।। त्रिकाल के समस्त कर्मों का मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदना से त्याग करके अब मैं परमनैष्कर्म्यभाव का अवलम्बन लेता हूँ। ___ इस कलश की भूमिका को स्पष्ट करते हुए आचार्य अमृतचन्द्र उत्थानिका में लिखते हैं कि सबसे पहले सम्पूर्ण कर्मों से संन्यास लेने की भावना को नचाते हैं।
इसतरह यह कलश प्रतिक्रमणकल्प, आलोचनाकल्प और प्रत्याख्यानकल्प - इन तीनों कल्पों का प्रस्तावनारूप कलश है। ___ भूतकाल में किये गये दुष्कृत्यों का प्रायश्चित्त प्रतिक्रमणकल्प में और वर्तमान में हो रहे दुष्कृत्यों का प्रायश्चित्त आलोचनाकल्प में किया जाता है तथा प्रत्याख्यानकल्प में भविष्यकाल में संभावित दुष्कृत्यों से बचने की भावना भायी जाती है, उनसे बचने का संकल्प किया जाता है। - इन तीनों कालों के दुष्कृत्यों के त्याग की भावना मन-वचन-काय और कृत-कारित-अनुमोदना पूर्वक की जाती है।
स्वयं करना कत कहलाता है. दसरों से कराना कारित कहलाता है और न तो स्वयं करना और न दूसरों से कराना; किन्तु दूसरों के द्वारा किये गये कार्यों की प्रशंसा करना अनुमोदना कहलाती है।