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________________ ४९० शुभ या अशुभ स्पर्श तुझसे ना कहें कि हमें छू । यह आतमा भी कायगत स्पर्शों के पीछे ना भगे ।। ३७९ ।। शुभ या अशुभ गुण ना कहें तुम हमें जानो आत्मन् । यह आतमा भी बुद्धिगत सुगुणों के पीछे ना भगे । । ३८० ।। शुभ या अशुभ द्रव्य ना कहें तुम हमें जानो आत्मन् । यह आतमा भी बुद्धिगत द्रव्यों के पीछे ना भगे । । ३८१ ।। यह जानकर भी मूढ़जन ना ग्रहें उपशमभाव को । मंगलमती को ना ग्रहें पर के ग्रहण का मन करें ।। ३८२ ।। समयसार अशुभ: शुभोवा गुणो न त्वां भणति बुध्यस्व मामिति स एव । न चैति विनिर्ग्रहीतुं बुद्धिविषयमागतं तु गुणम् । । ३८० ।। अशुभं शुभं वा द्रव्यं न त्वां भणति बुध्यस्व मामिति स एव । न चैति विनिर्ग्रहीतुं बुद्धिविषयमागतं द्रव्यम् ।। ३८१ ।। एतत्तु ज्ञात्वा उपशमं नैव गच्छति मूढः । विनिर्ग्रहमना: परस्य च स्वयं च बुद्धिं शिवामप्राप्तः । । ३८२ ।। यथेह बहिरर्थो घटपटादि:, देवदत्तो यज्ञदत्तमिव हस्ते गृहीत्वा, 'मां प्रकाशय' इति स्वप्रकाशने पौद्गलिक भाषावर्गणायें बहुत प्रकार से निन्दारूप और स्तुतिरूप वचनों में परिणमित होती हैं। उन्हें सुनकर अज्ञानी जीव 'ये वचन मुझसे कहे गये हैं' - ऐसा मानकर रुष्ट (नाराज) होते हैं और तुष्ट (प्रसन्न) होते हैं । शब्दरूप परिणमित पुद्गलद्रव्य और उसके गुण यदि तुझसे भिन्न हैं तो हे अज्ञानी जीव ! तुझसे तो कुछ भी नहीं कहा गया, फिर भी तू रोष क्यों करता है ? शुभ या अशुभ शब्द तुझसे यह नहीं कहते कि तू हमें सुन और आत्मा भी अपने स्थान से च्युत होकर कर्ण इन्द्रिय के विषय में आये हुए शब्दों को ग्रहण करने (जानने) को नहीं जाता । इसीप्रकार शुभ या अशुभ रूप यह नहीं कहता कि मुझे देख और आत्मा भी चक्षु इन्द्रिय के विषय में आये हुए रूप को ग्रहण करने नहीं जाता तथा शुभ और अशुभ गंध भी तुझसे यह नहीं कहती कि तू मुझे सूँघ और आत्मा भी घ्राण इन्द्रिय के विषय में आयी हुई गंध को ग्रहण करने नहीं जाता । इसीप्रकार शुभ या अशुभ रस तुझसे यह नहीं कहते कि तुम हमें चखो और आत्मा भी रसना इन्द्रिय के विषय में आये हुए रसों को ग्रहण करने नहीं जाता तथा शुभ या अशुभ स्पर्श तुझसे यह नहीं कहते कि तुम हमें स्पर्श करो और आत्मा भी स्पर्शन इन्द्रिय के विषय में आये हुए स्पर्शों को ग्रहण करने नहीं जाता । इसीप्रकार शुभ या अशुभ गुण तुझसे यह नहीं कहते कि तू हमें जान और आत्मा भी बुद्धि के विषय में आये हुए गुणों को ग्रहण करने नहीं जाता तथा शुभ या अशुभ द्रव्य तुझसे यह नहीं
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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