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________________ सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार ४८१ ज्ञान-दर्शन-चरित ना किंचित् अचेतन काय इसलिए यह आतमा क्या कर सके उस काय में ।।३६८।। सद्ज्ञान का सम्यक्त्व का उपघात चारित्र का कहा। अन्य पुद्गल द्रव्य का ना घात किंचित् भी कहा ।।३६९।। जीवस्स जे गुणा केइ णत्थि खलु ते परेसु दव्वेसु। तम्हा सम्मादिट्ठिस्स णत्थि रागो दु विसएसु ।।३७०।। रागो दोसो मोहो जीवस्सेव य अणण्णपरिणामा। एदेण कारणेण दु सद्दादिसु णत्थि रागादी ।।३७१।। दर्शनज्ञानचारित्रं किंचिदपि नास्ति त्वचेतने विषये। तस्मात्किं हंति चेतयिता तेषु विषयेषु ।।३६६।। दर्शनज्ञानचारित्रं किंचिदपि नास्ति त्वचेतने कर्मणि । तस्मात्किं हंति चेतयिता तत्र कर्मणि ।।३६७।। दर्शनज्ञानचारित्रं किंचिदपि नास्ति त्वचेतने काये। तस्मात्किं हंति चेतयिता तेषु कायेषु ।।३६८।। ज्ञानस्य दर्शनस्य च भणितो घातस्तथा चारित्रस्य । नापि तत्र पुद्गलद्रव्यस्य कोऽपि घातस्तु निर्दिष्टः ।।३६९।। जीवस्य ये गुणा: केचिन्न संति खलु ते परेषु द्रव्येषु । तस्मात्सम्यग्दृष्टास्ति रागस्तु विषयेषु ।।३७०।। रागो द्वेषो मोहो जीवस्यैव चानन्यपरिणामाः। एतेन कारणेन तु शब्दादिषु न संति रागादयः ।।३७१।। जीव के जो गुण कहे वे हैं नहीं परद्रव्य में। बस इसलिए सद्वृष्टि को है राग विषयों में नहीं ।।३७०।। अनन्य हैं परिणाम जिय के राग-द्वेष-विमोहये। बस इसलिए शब्दादि विषयों में नहीं रागादि ये ।।३७१।। दर्शन, ज्ञान और चारित्र अचेतन विषयों में किंचित्मात्र भी नहीं हैं, इसलिए आत्मा उन विषयों में क्या घात करेगा? इसीप्रकार दर्शन, ज्ञान और चारित्र अचेतन कर्मों में भी किंचित्मात्र नहीं हैं; इसलिए आत्मा उन कर्मों में भी क्या घात करेगा? इसीप्रकार दर्शन, ज्ञान और चारित्र अचेतन काय में भी किंचित्मात्र नहीं हैं। इसलिए आत्मा उन कायों में भी क्या घात करेगा ? जहाँ दर्शन, ज्ञान और चारित्र का घात कहा है; वहाँ पुदगलद्रव्य का किंचित्मात्र भी घात
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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