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बंधाधिकार
३९३ होनेवाले भाव को भी नहीं त्यागता। यथा चाध:कर्मादीन पदगलद्रव्यदोषान्न नाम करोत्यात्मा परद्रव्यपरिणामत्वे सति आत्मकार्यत्वाभावात्, ततोऽध:कर्मोद्देशिकं च पुद्गलद्रव्यं न मम कार्यं नित्यमचेतनत्वे सति मत्कार्यत्वाभावात् इति तत्त्वज्ञानपूर्वकं पुद्गलद्रव्यं निमित्तभूतं प्रत्याचक्षाणो नैमित्तिकभूतं बंधसाधकं भावं प्रत्याचष्टे, तथा समस्तमपि परद्रव्यं प्रत्याचक्षाणस्तन्निमित्तं भावं प्रत्याचष्टे । एवं द्रव्यभावयोरस्ति निमित्तनैमित्तिकभावः ।।२८६-२८७ ।।
अध:कर्म आदि पुद्गलद्रव्य के दोषों को आत्मा वस्तुत: तो करता ही नहीं; क्योंकि वे परद्रव्य के परिणाम हैं; इसलिए उन्हें आत्मा के कार्यत्व का अभाव है। इसकारण अध:कर्म
और उद्देशिक पुद्गलकर्म मेरे कार्य नहीं हैं; क्योंकि वे सदा ही अचेतन हैं; इसलिए उनको मेरे कार्यत्व का अभाव है।
इसप्रकार तत्त्वज्ञानपूर्वक निमित्तभूत पुद्गलद्रव्य का प्रत्याख्यान करता हुआ आत्मा (मुनि) जिसप्रकार नैमित्तिकभूत बंधसाधकभाव का प्रत्याख्यान करता है; उसीप्रकार समस्त परद्रव्य का प्रत्याख्यान करता हुआ (त्याग करता हुआ) आत्मा उनके निमित्त से होनेवाले भावों का भी प्रत्याख्यान करता है। इसप्रकार द्रव्य और भाव को निमित्त-नैमित्तिकता है।"
आचार्य जयसेन की तात्पर्यवृत्ति टीका में उक्त दोनों गाथाओं के साथ में एक-एक गाथा और भी प्राप्त होती है। वे गाथायें उक्त गाथाओं की पूरक गाथायें ही हैं। उन गाथाओं का क्रम इसप्रकार है
आधाकम्मादीया पुग्गलदव्वस्स जे इमे दोसा। कह ते कुव्वदि णाणी परदव्वगुणा हु जे णिच्चं ।। आधाकम्मादीया पुग्गलदव्वस्स जे इमे दोसा। कहमणुमण्णदि अणेण कीरमाणा परस्स गुणा ।। आधाकम्मं उद्देसियं च पोग्गलमयं इमं दव्वं । कह तं मम होदि कदं जं णिच्चमचेदणं वृत्तं ।। आधाकम्मं उद्देसियं च पोग्गलमयं इमं दव्वं । कह तं मम कारविदं जं णिच्चमचेदणं वृत्तं ।।
(हरिगीत ) अध:कर्मक आदि जो पुद्गल दरब के दोष हैं। परद्रव्य के गुणरूप उनको ज्ञानिजन कैसे करें? ।। अध:कर्मक आदि जो पुद्गल दरब के दोष हैं। तो ज्ञानि कैसे करें परकृत गुणों की अनुमोदना? ।। उद्देशिक अध:कर्म जो पुद्गल दरबमय अचेतन । कहे जाते वे सदा मेरे किये किस भाँति हों? ।। उद्देशिक अध:कर्म जो पुद्गलदरबमय अचेतन ।