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निर्जराधिकार
२९७ प्रकरण का स्वामित्व होने से प्राकरणिक है; उसीप्रकार सम्यग्दृष्टि जीव पूर्व संचित कर्मोदय से विषयान् सेवमानोऽपि रागादिभावानामभावेन विषयसेवनफलस्वामित्वाभावादसेवक एव, मिथ्यादृष्टिस्तु विषयानसेवमानोऽपि रागादिभावानां सद्भावेन विषयसेवनफलस्वामित्वात्सेवक एव।।१९७।।
(मन्दाक्रान्ता) सम्यग्दृष्टेर्भवति नियतं ज्ञानवैराग्यशक्तिः स्वं वस्तुत्वं कलयितुमयं स्वान्यरूपाप्तिमुक्त्या । यस्माज्ज्ञात्वा व्यतिकरमिदं तत्त्वतः स्वं परं च
स्वस्मिन्नास्ते विरमति परात्सर्वतो रागयोगात् ।।१३६।। प्राप्त हुए विषयों का सेवन करता हआ भी रागादिभावों के अभाव के कारण विषयसेवन के फल का स्वामित्व न होने से असेवक ही है और मिथ्यादृष्टि विषयों का सेवन न करता हुआ भी रागादिभावों के सद्भाव के कारण विषयसेवन के फल का स्वामित्व होने से सेवक ही है।"
इसप्रकार इस गाथा में यही कहा गया है कि भोगों में एकत्व-ममत्व और कर्तृत्व-भोक्तृत्व बुद्धि के कारण मिथ्यादृष्टि भोगों को न भोगते हए भी भोक्ता है तथा भोगों में एकत्व-ममत्व और कर्तृत्वभोक्तृत्व बुद्धि के अभाव के कारण सम्यग्दृष्टि भोगों को भोगता हुआ भी अभोक्ता है। अब आगामी गाथा का सूचक कलश काव्य कहते हैं, जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है -
(हरिगीत) निजभाव को निज जान अपनापन करेंजो आतमा। परभाव से हो भिन्न नित निज में रमें जो आतमा ।। वे आतमा सद्वृष्टि उनके ज्ञान अर वैराग्य बल।
हो नियमसे-यह जानिये पहिचानिये निज आत्मबल ॥१३६।। सम्यग्दृष्टि के नियम से ज्ञान और वैराग्य शक्ति होती है। क्योंकि वह स्व के ग्रहण और पर के त्याग करने की विधि द्वारा स्वयं के वस्तुत्व (यथार्थ स्वरूप) का अभ्यास करने के लिए यह स्व है और यह पर है' - इसप्रकार के भेद को परमार्थ से जानकर स्व में स्थिर होता है और पर से, राग के योग से सम्पूर्णत: विराम लेता है।
तात्पर्य यह है कि स्व और पर का यथार्थ भेद जानकर पर से विरक्त हो स्व में लीन होनेवाले सम्यग्दृष्टियों के आत्मज्ञान और वैराग्य की शक्ति नियम से होती है। __इस कलश में यह कहा गया है कि सम्यग्दृष्टि जीवों के सम्यग्ज्ञान और भूमिकानुसार वैराग्य अवश्य होता है; क्योंकि श्रद्धागुण के सम्यक् परिणमन के साथ-साथ ही ज्ञान का परिणमन भी सम्यक् हो जाता है और आत्मानुभूतिपूर्वक होनेवाले चतुर्थ गुणस्थान में ही अनंतानुबंधी कषाय का अभाव हो जाने से तत्संबंधी राग-द्वेष का भी अभाव हो जाता है; इसकारण तत्संबंधी वैराग्य भी हो जाता है। यही कारण है कि यहाँ कहा गया है कि सम्यग्दष्टि के ज्ञान और वैराग्य शक्ति नियम से