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________________ संवराधिकार अथ प्रविशति संवरः। ( शार्दूलविक्रीडित ) आसंसार-विरोधि-संवर-जयकांतावलिप्तास्रवन्यक्कारात्प्रतिलब्धनित्यविजयं संपादयत्संवरम् । व्यावृत्तं पररूपतो नियमितं सम्यक्स्वरूपेस्फुरज्योतिश्चिन्मयमुज्ज्वलं निजरसप्राग्भारमुज्जृम्भते ।।१२५।। मंगलाचरण (दोहा) अपनापन शुद्धात्म में, अपने में ही लीन । होना ही संवर कहा, जिनवर परम प्रवीण ।। ग्रन्थाधिराज समयसार में सर्वप्रथम जीवाजीवाधिकार में दृष्टि के विषयभूत त्रिकाली ध्रुव निज भगवान आत्मा को वर्णादि व रागादिभावों से भिन्न बताकर उनसे एकत्व-ममत्व छुड़ाया गया है। उसके बाद कर्ताकर्माधिकार में उन्हीं वर्णादि व रागादिभावों के कर्तृत्व और भोक्तृत्व से इन्कार किया गया है। उसके बाद पुण्यपापाधिकार में पाप के समान ही पुण्यभाव को भी बंध का कारण बताकर हेय बताया है, भगवान आत्मा से भिन्न बताया गया है। उसके बाद आस्रवाधिकार में भी उसी बात को आगे बढ़ाते हुए पाप और पुण्य दोनों ही भाव आस्रव हैं, बंध के कारण हैं; इसकारण हेय हैं - यह बताया गया है। अब इस संवराधिकार में उन सभी भावों से भेदविज्ञान कराया जा रहा है। यद्यपि विगत अधिकारों में भी उक्त भावों से भेदविज्ञान ही कराया गया था, क्योंकि सम्पूर्ण समयसार ही भेदविज्ञान के लिए समर्पित है; तथापि इस संवराधिकार में भेदविज्ञान की विशेष महिमा बताई गई है। इस अधिकार की आरंभिक गाथाओं की जो उत्थानिका आत्मख्याति टीका में दी गई है, उसमें कहा गया है कि अब इससे पहले सम्पूर्ण कर्मों का संवर करने का उत्कृष्ट उपाय जो भेदविज्ञान है; उसका अभिनन्दन करते हैं । एकप्रकार से यह अधिकार भेदविज्ञान के अभिनन्दन का ही अधिकार है। समयसार नाटक के रंचमंच पर 'अब संवर नामक पात्र प्रवेश करता है।' आत्मख्याति टीका में अन्य अधिकारों के समान ही इस अधिकार का आरंभ भी मंगलाचरण के रूप में ज्ञानज्योति के स्मरणपूर्वक होता है। मंगलाचरण के छन्द का पद्यानुवाद इसप्रकार है - (हरिगीत) संवरजयी मदमत्त आस्रवभाव का अपलाप कर । व्यावृत्य हो पररूप से सदबोध संवर भास्कर ।। प्रगटा परम आनन्दमय निज आत्म के आधार से। सद्ज्ञानमय उज्ज्वल धवल परिपूर्ण निजरसभार से ।।१२५।।
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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