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________________ आस्रवाधिकार २६५ ज्ञानी के ये हैं नहीं, तातें बंध अभाव ।।११९।। ज्ञानियों के राग-द्वेष-मोह भावों का होना असंभव है, इसीलिए उनके बंध भी नहीं होता; क्योंकि वे राग-द्वेष-मोह ही बंध के कारण हैं।। रागो दोसो मोहो य आसवा णत्थि सम्मदिट्ठिस्स। तम्हा आसवभावेण विणा हेदू ण पच्चया होति ।।१७७।। हेदू चदुव्वियप्पो अट्ठवियप्पस्स कारणं भणिदं । तेसिं पि य रागादी तेसिमभावे ण बझंति ।।१७८।। रागो द्वेषो मोहश्च आस्रवा न संति सम्यग्दृष्टेः। तस्मादास्रवभावेन विना हेतवो न प्रत्यया भवति ।।१७७।। हेतुश्चतुर्विकल्प: अष्टविकल्पस्य कारणं भणितम् । तेषामपि च रागादयस्तेषामभावे न बध्यते ।।१७८।। रागद्वेषमोहा न संति सम्यग्दृष्टेः सम्यग्दृष्टित्वान्यथानुपपत्तेः। तदभावे न तस्य द्रव्यप्रत्ययाः पुद्गलकर्महेतुत्वं बिभ्रति, द्रव्यप्रत्ययानां पुद्गलकर्महेतुत्वस्य रागादिहेतुत्वात् । ततो हेतुहेत्वभावे हेतुमदभावस्य प्रसिद्धत्वात् ज्ञानिनो नास्ति बंधः ।।१७७-१७८ ।। १७७-१७८वीं गाथाओं की उत्थानिका के रूप में समागत इस कलश में यह कहा गया है कि बंध के कारणभूत मोह-राग-द्वेषभाव ज्ञानियों के नहीं होते; इसीकारण उन्हें बंध भी नहीं होता। अब इसी बात को गाथाओं के माध्यम से कहते हैं। मूल गाथाओं का पद्यानुवाद इसप्रकार है - (हरिगीत ) रागादि आस्रवभाव जो सद्वृष्टियों के वे नहीं। इसलिए आस्रवभाव बिन प्रत्यय न हेतु बंध के ।।१७७।। अष्टविध कर्मों के कारण चार प्रत्यय ही कहे। रागादि उनके हेतु हैं उनके बिना बंधन नहीं।।१७८।। राग-द्वेष-मोहरूप आस्रवभाव सम्यग्दृष्टियों के नहीं होते; इसलिए उन्हें आस्रवभाव के बिना द्रव्यप्रत्यय कर्मबंध के कारण नहीं होते। मिथ्यात्वादि चार प्रकार के हेतु आठ प्रकार के कर्मों के बंध के कारण कहे गये हैं और उनके भी कारण जीव के रागादि भाव हैं। इन गाथाओं का भाव आचार्य अमृतचन्द्र आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट करते हैं - “सम्यग्दृष्टि के राग-द्वेष-मोह नहीं हैं; क्योंकि सम्यग्दृष्टित्व की अन्यथा अनुपपत्ति है। तात्पर्य यह है कि राग-द्वेष-मोह के अभाव के बिना सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति ही संभव नहीं है। राग-द्वेष-मोह के अभाव में सम्यग्दृष्टियों को द्रव्यप्रत्यय पुद्गलकर्म के बंधन का हेतु नहीं
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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