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समयसार
( रोला छन्द) केवल ज्ञायकभाव जो बद्धाबद्ध नहीं है।
जो प्रमत्त-अप्रमत्त न शुद्धाशुद्ध नहीं है।। नय-प्रमाण के जिसमें भेद-प्रभेद नहीं हैं।
जिसमें दर्शन-ज्ञान-चरित के भेद नहीं हैं ।।५।। जिसमें अपनापन ही दर्शन-ज्ञान कहा है।
सम्यक्चारित्र जिसका निश्चलध्यान कहा है।। वह एकत्व-विभक्तशुद्ध आतम परमातम ।
अजअनादिमध्यान्त रहित ज्ञायकशुद्धातम ॥६॥ गण भेदों से भिन्न सार है समयसार का।
पर्यायों से पार सार है समयसार का।। मुक्तिवधू का प्यार सार है समयसार का।
एकमात्र आधार सार है समयसार का ।।७।। शुद्धभाव सेबलि-बलिजाऊँसमयसार पर।
जीवन का सर्वस्व समर्पण समयसार पर ।। समयसार की विषयवस्तु में नित्य रमे मन ।
समयसार के ज्ञान-ध्यान में बीते जीवन ।।८।। शुद्धभाव से करूँ विरेचन पुण्य-पाप का।
शुद्धभाव से करूँ विवेचन समयसार का ।। समयसार की टीका ज्ञायकभावप्रबोधिनि ।
भक्तिभाव से लिखने का संकल्प किया है।।९।। आत्मख्याति टीका है जैसी गद्य-पद्य में।
वैसी ही यह टीका होगी गद्य-पद्य में ।। समयसारअर आत्मख्यातिको सभी जनों तक।
पहुँचाने के लिए लिख रहा जनभाषा में ।।१०।।