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श्रीमदमृतचन्द्रसूरिकृत आत्मख्याति संस्कृत टीका
एवं डॉ. हकमचन्द भारिल्लकृत ज्ञायकभावप्रबोधिनी हिन्दी टीका
सहित श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवविरचित = समयसार
मंगलाचरण
(दोहा) समयसार को साधकर, बने सिद्ध भगवान । अनंत चतुष्टय के धनी, श्री अरिहंत महान ।।१।। आचारज पाठक मुनी, प्रमत्त और अप्रमत्त । गुण में नित विचरण करें, नमन करूँमैं नित्य ।।२।। ज्ञायकभाव प्रकाशिनी, भाषी श्री भगवन्त । परमतत्त्व प्रतिपादिनी, जिनवाणी जयवंत ।।३।।
( अडिल्ल छन्द) साधकगण का एकमात्र है साध्य जो।
मुक्तिमार्ग का एकमात्र आराध्य जो।। उसमें ही मन रमे निरन्तर रात-दिन ।
परमसत्य शिव सुन्दर ज्ञायकभाव जो ।।४।।