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________________ ८८ अप्पाणमयाणंता मूढा दु परप्पवादिणो केई । जीवं अज्झवसाणं कम्मं च तहा परूवेंति ।। ३९ ।। अवरे अज्झवसाणेसु तिव्वमंदाणुभागगं जीवं । मण्णंति तहा अवरे णोकम्मं चावि जीवो त्ति ।। ४० ।। कम्मस्सुदयं जीवं अवरे कम्माणुभागमिच्छंति । तिव्वत्तणमंदत्तणगुणेहिं जो सो हवदि जीवो । ।४१।। जीवो कम्मं उह्यं दोण्णि वि खलु केइ जीवमिच्छति । अवरे संजोगेण दु कम्माणं जीवमिच्छंति ।। ४२ ।। एवंविहा बहुविहा परमप्पाणं वदंति दुम्मेहा । ते ण परमट्टवादी णिच्छयवादीहिं णिद्दिट्ठा ||४३|| समयसार इस समयसाररूपी नाटक का खलनायक मोह है, मिथ्यात्व है, अज्ञान है और उस मोह को, मिथ्यात्व को, अज्ञान को नाश करनेवाला ज्ञान, सम्यग्ज्ञान, केवलज्ञान धीरोदात्त नायक है; जो नित्य उदयरूप है और अनाकुल है। यही कारण है कि इस मंगलाचरण के छन्द में उसे ही स्मरण किया गया है। न केवल इसी अधिकार में, अपितु प्रत्येक अधिकार के आरम्भ में आत्मख्यातिकार आचार्य अमृतचन्द्र ने धीर-वीर ज्ञान की महिमा गाकर ही मंगलाचरण किया है। अन्तर मात्र इतना ही है कि यहाँ जीवाजीवाधिकार होने से जीव और अजीव में भेद बतानेवाले ज्ञान को स्मरण किया गया है तो अन्य अधिकारों में तत्सम्बन्धी अज्ञान का नाश करनेवाले ज्ञान को स्मरण किया जायेगा । ज्ञान तो वही है, मात्र विशेषणों का अन्तर पड़ेगा । इसप्रकार ज्ञान को नमस्कार कर, स्मरण कर अब जीव और अजीव किसप्रकार एक होकर रंगभूमि में प्रवेश करते हैं - इस बात को गाथाओं द्वारा स्पष्ट करते हैं । तात्पर्य यह है कि अज्ञानी जीव किसप्रकार आत्मा के वास्तविक स्वरूप को न जानकर पर (पुद्गल) को ही आत्मा मान लेते हैं - यह बात पाँच गाथाओं द्वारा बता रहे हैं। मूल गाथाओं का पद्यानुवाद इसप्रकार है ( हरिगीत ) - परात्मवादी मूढ़जन निज आतमा जानें नहीं । अध्यवसान को आतम कहें या कर्म को आतम कहें ।। ३९ ।। अध्यवसानगत जो तीव्रता या मन्दता वह जीव है । पर अन्य कोई यह कहे नोकर्म ही बस जीव है ।।४० ॥ मन्द अथवा तीव्रतम जो कर्म का अनुभाग है ' वह जीव है या कर्म का जो उदय है वह जीव है ।। ४१ ।। द्रव कर्म का अर जीव का सम्मिलन ही बस जीव है । अथवा कहे कोइ करम का संयोग ही बस जीव है ।।४२ ॥ बस इसतरह दुर्बुद्धिजन परवस्तु को आतम कहें । परमार्थवादी वे नहीं परमार्थवादी यह कहें ||४३||
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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