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________________ समाधि और सल्लेखना देखो गजमुनि के शिर ऊपर, विप्र अगिनि बहु बारी। शीश जलै जिम लकड़ी तिनको, तो भी नाहिं चिंगारी ।।यह उपसर्ग / / सनतकुमार मुनि के तन में, कुष्ट वेदना व्यापी। छिन्न-भिन्न तन तासों हूवो, तब चिंत्यो गुण आपी ।।यह उपसर्ग . / / समंतभद्र मुनिवर के तन में, क्षुधा वेदना आई। तौ दुःख में मुनि नेक न डिगियो, चिंत्यो निजगुण भाई ।।यह उपसर्ग.।। सातशतक मुनिवर दुःख पायो, हथनापुर मैं जानो। बलि ब्राह्मणकृत घोर उपद्रव, सो मुनिवर नहिं मानो। यह उपसर्ग.।। लोहमयी आभूषण गढ़ के, ताते कर पहराये / पाँचों पांडव मुनि के तन में, तो भी नाहिं चिंगाये ।।यह उपसर्ग . / / और अनेक भये इस जगमें, समता रसके स्वादी। वे ही हमको हो सुखदाता, हरहैं टेव प्रमादी / / सम्यक्दर्शन ज्ञान चरन तप, ये आराधन चारों। ये ही मोकों सुख की दाता, इन्हें सदा उर धारों / / यों समाधि उरमाहि लावों, अपनों हित जो चाहो। तज ममता अरू आठों मदको, जोति स्वरूपी ध्यावो।। अब परगति को चालत बिरियां, धर्म ध्यान उर आनो। चारों आराधन आराधो, मोहतनों दुःख हानो / / होय निःशल्य तजो सब दुविधा आतम राम सुध्यावो। जब परगति को करहु पयानों, परम तत्त्व उर लावो।। मोह जाल को काट पियारे, अपनो रूप विचारो। मृत्यु मित्र उपकारी तेरी, यों उर निश्चय धारो / / श्री रतनचंदजी भारिल्ल के प्रति मुनिराजों के आशीर्वचन बहुत-बहुत मंगल आशीर्वाद धर्मानुरागी विद्वान पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल वर्तमान जैनसमाज के उच्चकोटि के विद्वानों में से एक हैं। वर्तमान में वे जिसप्रकार एक दीपक से हजारों दीपक जलते हैं, एक बीजान्न से अनेक बीजान्न उत्पन्न होते हैं, उसीप्रकार अनेक विद्वानों को तैयार कर जिनवाणी की महान सेवा कर रहे हैं। पण्डितजी एक सिद्धहस्त एवं आगमनिष्ठ लेखक भी हैं। उनका ज्ञान अत्यन्त प्रमाणिक है, जो उनकी प्रत्येक कृति में अभिव्यक्त हो रहा है, चाहे वह 'जिनपूजन रहस्य' हो, चाहे 'णमोकार महामंत्र'। मुझे उनकी किसी भी कृति में एक अक्षर भी आगमविरुद्ध लिखा नहीं मिला। उनके सार्वजनिक अभिनन्दन के इस अवसर पर मेरा बहुत-बहुत मंगल आशीर्वाद है, वे स्वस्थ एवं दीर्घायु होकर विद्वानों को तैयार करते रहें और श्रेष्ठ साहित्य का सृजन करके साहित्य सेवा भी करते रहें। * राष्ट्रसंत आचार्य श्री विद्यानन्दजी महाराज अत्यन्त सरल स्वभावी विद्वान पण्डित रतनचन्द भारिल्ल अत्यन्त सरलस्वभावी व जिनागम के ज्ञाता विद्वान हैं। उन्होंने अत्यन्त सरल शब्दों में श्रावकाचार, जिनपूजन रहस्य जैसी अनेकों जैनधर्म की सामान्य परन्तु महत्वपूर्ण ज्ञानवर्द्धक पुस्तकों की रचना की है। अभी उन्होंने शलाकापुरुष एवं हरिवंशकथा जैसी प्रथमानुयोग की अनुपम पुस्तकों का भी सुन्दर लेखन किया है। पण्डित रतनचन्द भारिल्ल जैन समाज में इसीप्रकार जिनवाणी का प्रचार-प्रसार करते रहें - हमारा यही मंगल शुभ आशीर्वाद है। •आचार्यश्री धर्मभूषणजी महाराज कोटिशः शुभाशीष धर्मानुरागी पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल समाज के सुयोग्य विद्वान हैं और अच्छे तत्त्वप्रचारक हैं। समाज ने इनका अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित करने का सफल प्रयास किया है, जो प्रशंसनीय है। समाज इसीप्रकार सरस्वती पुत्रों का सम्मान करती रहे, जिससे विद्वानों के द्वारा जिनवाणी का प्रचार-प्रसार हो सके। अभिनंदन ग्रन्थ प्रकाशन समिति को कोटिशः शुभाशीष सद्धर्मवृद्धिरस्तु / * आचार्यश्री भरतसागरजी महाराज
SR No.008376
Book TitleSamadhi aur Sallekhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherDigambar Jain Vidwatparishad Trust
Publication Year2005
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size100 KB
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