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________________ REFFEE IFE 19 | सज्जनता उसका स्वाभाविक गुण था, अन्यथा वह प्राण हरण करनेवाले शत्रुओं पर भी क्रोध क्यों नहीं | करता ? शत्रुओं पर तो क्रोध सभी को आ जाता है, पर वह सज्जनोत्तम था, इसकारण उसका कोई शत्रु ही नहीं था। उसके राज्य में कोई अत्यावश्यक धन बर्बाद नहीं करता था और न कोई ऐसा अधिक कृपण ही था कि जरूरत पड़ने पर भी धन खर्च न करे। | इसप्रकार वह राजा अपनी प्रजा का पालन करनेवाला होने से प्रजा के लिए अत्यन्त प्रिय था। उसका | ऐसा उत्कृष्ट चरित्र पाठकों के लिए सदा अनुकरणीय है। यदि हम राजा अजितसेन के गुणों को थोड़ा भी अपना सकें तो हमारा लौकिक और पारलौकिक जीवन धन्य हो सकता है। | जब वह राजा यौवन को प्राप्त हुआ, तब उसके पूर्वोपार्जित पुण्य के उदय से चक्रवर्ती पद प्राप्त होने से चौदह रत्न और नौ निधियाँ प्रगट हो गईं थीं तथा भजन, भोजन, शय्या, सेना, सवारी, आसन, निधियाँ, | रत्न, नगर और नाट्य इन दश भोगों का वह अनुभव करता था। श्रद्धा आदि गुणों से सम्पन्न उस राजा ने किसी समय एक माह का उपवास करनेवाले अरिन्दनामक साधु को आहार दान देकर ऐसे सातिशय पुण्य का बन्ध किया। जिससे उसके घर में रत्नवृष्टि आदि आश्चर्य हुए। दूसरे दिन वह राजा अजितसेन जिनेन्द्र की वन्दना करने के लिए मनोहर उद्यान में गया। वहाँ उसने जिनेन्द्र भगवान की दिव्यध्वनि द्वारा धर्मश्रवण किया। उसके मन में अपने पूर्वभव जानने की जिज्ञासा हुई तो दिव्यध्वनि द्वारा उसकी जिज्ञासा पूर्ण तो हुई ही, साथ ही संसार को असार जानकर उसे वैराग्य भी हो गया। वह जितशत्रु नाम के अपने पुत्र को राज्य देकर मोह राजा को जीतने के लिए तत्पर हो गया तथा बहुत से राजाओं के साथ उसने तप धारण कर लिया। निरतिचार तप को करता हुआ आयु के अन्त में वह समाधिमरण पूर्वक देह त्याग कर सोलहवें स्वर्ग में अच्युतेन्द्र हुआ। वहाँ उसकी २२ सागर की आयु थी। तीन हाथ ऊँचा शरीर था, शुक्ल लेश्या थी। वह ग्यारह माह में एकबार श्वांस लेता था। बाईस हजार वर्ष के बाद एकबार अमृतमयी मानसिक आहार लेता था। उसके देशावधि ज्ञान रूप नेत्र छठवीं पृथ्वी तक के पदार्थों को देखते थे। a48448
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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