________________
OREFFEFFy
इसप्रकार निर्मल सम्यग्दर्शन को धारण करनेवाला वह अच्युतेन्द्र चिरकाल तक स्वर्ग के सुख भोगकर | आयु के अन्त में देह त्यागकर धातकीखण्ड द्वीप में सीता नदी तट पर मंगलावती देश के कनकप्रभा राजा के घर कनकमाला रानी के उदर से शुभ स्वप्नों द्वारा अपने उत्पन्न होने की सूचना देता हुआ ‘पद्मनाथ' नाम का पुत्र हुआ। वह बालकोचित सेवाविशेष के द्वारा निरतिचार वृद्धिंगत होता गया। समय पर उसे मूलगुण और सामान्य श्रावक के व्रतादि देकर विद्यागृह में प्रविष्ट कराया। कुलीन विद्यागुरु और अन्य विद्यार्थियों के साथ रहकर राजकुमार समस्त विद्याओं को सीखने में तत्पर रहता था। उसमें विद्यार्थी के सभी लक्षण ॥ थे, जो इसप्रकार हैं -
"काकचेष्टा वकोध्यानं, श्वान निद्रातथैव च।
अल्पाहारी गृहत्यागी, विद्यार्थी पंचलक्षणम् ।।" विद्याध्ययन में सफलता पाने हेतु पाँच लक्षण बताये हैं - कौए के समान सक्रिय चेष्टा, बगुले की तरह | ध्यान में एकाग्रता, कुत्ते की भांति कच्ची नींद, भूख से कम खाना और गृह अर्थात् माता-पिता से मोहममत्व का त्याग होना जरूरी है, अन्यथा विद्यार्थी अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकता।
वह आलस्य त्याग कर अपने सब काम स्वयं करता था। वह यहाँ तक स्वावलम्बी था कि दासी-दासों द्वारा करानेवाले काम भी स्वयं करता था। वह जितेन्द्रिय भी था। वह बुद्धिमान बालक विनय की वृद्धि के लिए सदा वृद्धजनों की संगति कर उनसे मंगल आशीर्वाद प्राप्त करता था। शास्त्रों से सीखकर विनय करना तो कृत्रिम विनय है; परन्तु उसमें स्वाभाविक विनय गुण था, वह जानता था कि विनय विद्यार्थी का विशेष गुण है। इस गुण से अन्य गुणों का भी विकास होता है। कहा भी है -
“विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रतां।
पात्रत्वाद् धनंयाति धनात्धर्मं ततो सुखम् ॥" जब बालक युवा हो गया तो उसके विवाह हुए। दूसरी ओर पुत्र-पौत्रादि से घिरे रहनेवाले राजा | कनकप्रभ सुख से राज्य शासन करते हुए प्रजा का पालन करते थे।
a48448