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________________ REFFEE IFE 19 प्रसन्नता की बात तो यह है कि ऐसी सुख-समृद्धि में रहते हुए भी भली होनहारवाले व्यक्ति समय से चेत जाते हैं। राजा कनकप्रभ ने भी एक दिन मनोहर नामक वन में पधारे हुए श्रीधर नामक जिनराज से धर्म का स्वरूप सुनकर/समझकर अपने राज्य का भार पुत्र को सौंपकर संयम धारण कर लिया और क्रम-क्रम से निर्वाण प्राप्त कर लिया। | यहाँ राजा कनकप्रभ के पुत्र पद्मनाथ ने भी उन्हीं जिनराज के समीप सामान्य श्रावक के व्रत लिए तथा | मंत्रियों के साथ स्वराष्ट्र और परराष्ट्र की नीतियों का विचार करते हुए सुख-संतोष से रहने लगे। अत्यन्त सरल स्वभावी पत्नियों की विनय, हंसमुख प्रकृति, कोमलस्पर्श, विनोदवार्ता और चंचल चितवनों के द्वारा वह राजा पद्मनाभ परम प्रसन्न रहता था। रानियों का आकर्षक व्यक्तित्व और मनमोहक स्वभाव आदि जो राजा पद्मनाभ के मन को मोहित करने में कारण थे, वही सब अन्तर से कषायों की मन्दता, भेदविज्ञान और संसार के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान होते ही उसके वैराग्य के कारण बन गये। उसे विचार आया कि “ये सब भोगोपभोग पूर्वभव में किए पुण्य के फल हैं, पुण्य क्षीण होते ही ये सब देखते ही देखते कब/कहाँ/विलीन हो जायेंगे, पता भी नहीं चलेगा और चौरासी लाख योनियों में भटकते-फिरेंगे।" इसप्रकार तत्त्वज्ञान से अनजान मनुष्यों को यह सब बताते हुए राजा पद्मनाभ भी श्रीधर मुनि के समीप जाकर दीक्षित होने के लिए तत्पर हो गया। उसने विचार किया कि जबतक औदयिकभाव रहता है, तबतक आत्मा को संसार भ्रमण करना पड़ता है और औदयिकभाव तबतक रहते हैं जबकि कर्म रहते हैं और कर्म तब तक रहते हैं कि जबतक उनके कारण मिथ्यात्व आदि भाव रहते हैं; अत: मिथ्यात्वादि ही संसार के मूल हैं। मिथ्यात्व को स्थूल नष्ट किए बिना अन्य कारणों का अभाव हो ही नहीं सकता। यही सब पापों का बाप है। पद्मनाभ विचार करते-करते यह सब जोर-जोर से कहने लगे तो उनके समीपस्थ एक सज्जन ने पूछा - आप ये क्या कह रहे हैं ? कौन, किसका बाप है ? साथ ही आप धर्म के मर्म की बात भी कह रहे थे। इन दो बातों को थोड़ा स्पष्ट करके बतायें -
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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