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चन्द्र जिनका चिह्न है, वे चन्द्रप्रभ परमातमा । जो पूजता उनके चरण, वह आतमा परमातमा ।। जो चलें उनके चरण-पथ, वे भव्य अन्तरातमा । जो जानता उनको नहीं, वह व्यक्ति है बहिरातमा ।।
जो स्वयंशुद्ध है और जिनकी दिव्यध्वनि समस्त समोशरण में बैठे भव्य जीवों की परिणति को विशुद्ध बनाने में साक्षात निमित्तकारण है । वे चन्द्रमा की प्रभा के समान चन्द्रप्रभस्वामी हम सबकी आत्मशुद्धि में भी निमित्त बनें।
आचार्य गुणभद्र कहते हैं कि - "हे भव्य ! जिनका स्मरणमात्र पापों के क्षय का कारण है, उनके सम्पूर्ण | चरित्र के सुनने से पापाचार नष्ट क्यों नहीं होंगे ? होंगे ही। अतः सर्वप्रथम चन्द्रप्रभ भगवान के सात भवों की चर्चा करते हैं।
पुराणों में चर्चित शलाका पुरुषों के चरित्र भी सम्यग्ज्ञान के कारण हैं; अतः आत्महिताभिलाषियों को शलाका पुरुषों के चरित्र भी पढ़ना / सुनना आवश्यक है। अर्हन्त भगवान ने चार अनुयोगों के द्वारा जो चार च प्रकार के सूक्त (जिनवाणी की कथनशैली) बतलाये हैं, उनमें प्रथमानुयोग (पुराण) प्रथम सूक्त है ।
धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष का उपदेश देनेवाले भगवान ऋषभदेव आदि के पुराणों को जो जीभ (रसना) कहती है, जो कान सुनते हैं, जो मन सोचता है; वही जीभ है, वही कान हैं और वही मन है; इनके सुने बिना तो ये सब जड़ - इन्द्रियाँ केवल मांस के लोथड़े (पिण्ड) हैं, अन्य कुछ भी नहीं ।
जब वे अपने छठवें पूर्वभव में श्रीवर्मा थे, तब उन्हें सम्यक्त्व प्राप्त हो गया था ।
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पर्व