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________________ CREFFEE IFE 19 जैनेतर ग्रंथों में भी लिखा मिलेगा कि - गोरस माम मध्ये तु, मुद्गादि तथैव च । भक्ष्यमाणं कृतं नूनं, मांस तुल्यं युधिष्ठिरः।। हे युधिष्ठिर ! गोरस के साथ जिन पदार्थों की दो दालें होती हैं - उनके सेवन से मांस भक्षण के समान पाप लगता है। इसप्रकार तीर्थंकर भगवान सुपार्श्वनाथ की दिव्यदेशना का लाभ भव्यजीवों को भरपूर मिला। अन्त में जब आयु का एकमाह शेष रह गया तब विहार बंद करके वे सम्मेद शिखर पर जा पहुँचे। वहाँ एक हजार मुनियों के साथ उन्होंने प्रतिमायोग धारण किया। इसतरह फाल्गुन कृष्णा सप्तमी के दिन प्रात: सूर्योदय के समय शेष अघातिया कर्मों का क्षय होते ही | सिद्धपद प्राप्त कर लोकाग्रमें विराजमान हो गये।। । उनके मुक्त होते ही कल्पवासी देवों ने उनका निर्वाण कल्याणक का महोत्सव मनाया और अपने-अपने स्थान को चले गये। भगवान पार्श्वप्रभु के तीन भव पूर्व को आचार्य गुणभद्र पुनः स्मरण करते हुए कहते हैं भगवान सुपार्श्वनाथ तीन भव पूर्व क्षेमपुर नगर के स्वामी तथा सबके द्वारा स्तुति करने योग्य नन्दिषेण राजा हुए। फिर उसी भव में राज्य का मोह त्यागकर तपश्चरण करके तथा तीर्थंकर प्रकृति बांधकर नव ग्रेवेयकों में मध्य के ग्रैवेयक में अहमिन्द्र हुए। तदनन्तर जो बनारस नगरी में जन्म से ही तीन के धारक इक्ष्वाकु वंश के तिलक महाराजा सुपार्श्व से तीर्थंकर भगवान सुपार्श्वनाथ बने । वे सुपार्श्व प्रभु हम सबके मुक्तिमार्ग में अवलम्बन बनें - यह मंगलभावना है। || टिप्पणी - श्रावक के आचार-विचार की सप्रमाण विशेष जानकारी के लिए लेखक की अन्य कृति सामान्य श्रावकाचार देखें।
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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