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________________ CREFFEE IFE 19 | अब प्रश्न केवल कच्चे या उष्ण किए हुए दही छांछ का रहा, सो उसके लिए विवरणाचार का निम्नांकित आगम प्रमाण दिया जायेगा, जो इस अभक्ष्य भक्षण के दोष से बचने के लिए पर्याप्त होगा, मूल श्लोक इसप्रकार लिखा होगा - आमेन पक्केन च गो रसेन, पुद्गलादि युक्त द्विदलं तु कायं। जिहादितीस्यात्त्रसजीवराशि, सम्मूर्छिनमानश्यतिनामचित्रं ।।६।। अर्थात् कच्चे व पके हुए दोनों प्रकार के गोरस में दोदल वाले अनाज के मिश्रण में मुँह की लार मिलते ही त्रसजीवों की उत्पत्ति हो जाती है। अत: इनका खाना सर्वथा वर्ण्य है। | शंका - अब यहाँ विचारणीय बात केवल यह है कि जब दोनों तरह के प्रमाण मिलेंगे तो दही व छांछ को गर्म करके खाने में क्या हानि है ? समाधान - सबसे बड़ी हानि यह है कि प्रश्न में द्विदल खाने के प्रति अनुराग झलकता है, अन्यथा मैं || पूछता हूँ कि कच्चा व पके दोनों ही प्रकार के दही छाछ से बने भोजन के न खाने से हानि क्या है ? क्या उसके बिना जीवन संभव नहीं है ? जिसमें जरा भी शंका हो तो उसमें हमारा पक्ष निर्विवाद मुद्दे की ओर ढलना चाहिए, न कि विवादस्थ मुद्दे की ओर । अतः हमारा तो दृढ़ मत है कि त्रसघात से बचने के लिए कच्चे-पके दोनों प्रकार के दही-छाछ से बने द्विदल पदार्थ त्यागने योग्य है। प्रश्न - द्विदल अभक्ष्य के संदर्भ में केवल दूध, दही व छांछ को ही गोरस क्यों माना, घी भी तो गोरस है, घी को क्यों छोड़ दिया ? उत्तर - यहाँ इस संदर्भ में 'गोरस' योग रूढ शब्द है इसलिए गोरस शब्द का अर्थ दूध, दही व छाछ ही है। 'गोरसेनक्षीरेण दध्ना तक्रेण च' - ऐसा सागार धर्मामृत की टीका में स्पष्ट उल्लेख किया होगा। अतः घी मिश्रित द्विदल अन्न खाने में दोष नहीं है। E_s_n EFFE
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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