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(३) अनुपसेव्य - जिनका सेवन उत्तम पुरुष बुरा समझें, वे लोकनिंद्य पदार्थ अनुपसेव्य हैं। जैसे - श | लार, मूत्र आदि पदार्थ । लोकनिंद्य होने से इनका सेवन तीव्र राग के बिना संभव नहीं है, अत: ये अभक्ष्य हैं।
(४) नशाकारक - जो वस्तुएँ नशा उत्पन्न करती हैं, मादक होती हैं; उन्हें नशाकारक अभक्ष्य कहते हैं। जैसे शराब, अफीम, भंग, गांजा, तम्बाखू आदि।
(५) अनिष्ट - जो वस्तुएँ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हों, वे भी अभक्ष्य हैं, क्योंकि हानिकर वस्तुओं का उपभोग भी तीव्र राग के बिना संभव नहीं हैं। अत: वे पदार्थ भी अभक्ष्य हैं, खाने योग्य नहीं हैं।
जिनागम में २२ अभक्ष्य पदार्थों को विशेष नामोल्लेखपूर्वक त्यागने की प्रेरणा दी गई है; क्योंकि उनके सेवन से अनंत त्रसजीवों की हिंसा है। वे इसप्रकार हैं -
ओला घोरबड़ा निशिभोजन, बहुबीजा बेंगन संधान । बड़ पीपर ऊमर कठूमर, पाकर फल जो होय अजान ।। कंदमूल माटी विष आमिष, मधु माखन अरु मदिरापान ।
फल अतितुच्छ तुषार चलितरस, यो जिनमत बाईस बखान ।। उपर्युक्त २२ अभक्ष्यों में ओला (बर्फ-अगालित जल), घोरबड़ा (दहीबड़ा-द्विदल), निशिभोजन, बड़, | पीपर, ऊमर, पाकर और कठूमर (पाँचों उदुम्बर फल), आमिष (मांस), मधु (शहद), मदिरापान - इन ११ का कथन तो पीछे मूलगुणों में कर ही आये हैं, ये तो अभक्ष्य हैं ही। इनके अतिरिक्त बहुबीजा, बेगन, संधान (अचार-मुरब्बा), मक्खन, अनजान फल (जिसे जानते न हों) कंद (आलू, अरबी, प्याज, लहसुन), मूल (गाजर, मूली), मिट्टी, विष, अमर्यादित मक्खन तुच्छफल (जिसका बढ़ना चालू है, ऐसे अपरिपक्व फल-सप्रतिष्ठित फल) तुषार, चलितरस (सड़े-गले पदार्थ, जिनका स्वाद बिगड़ने लगा हो) इनमें भी अनंत त्रसजीव होते हैं। अत: ये भी अभक्ष्य हैं, त्याज्य हैं, खाने योग्य नहीं हैं। अहिंसा प्रेमियों को अपने | परिणामविशुद्धि और पाप से बचने के लिए यथाशक्य इन सबका त्याग भी अवश्य करना चाहिए।
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