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________________ EFFFFFF Tv । भूख से, प्यास से अथवा अन्य किसी भी दुःख से दुःखी जीवों को देखकर जो स्वयं दुःखी होकर उनके दुःखों को दूर करना चाहता है, उसके उस मिश्रित शुभभाव को सामान्यतया दया, करुणा या अनुकम्पा कहते हैं। “सर्व प्राणियों के प्रति उपकारबुद्धि रखना, मैत्रीभाव रखना, द्वेषबुद्धि छोड़कर मध्यस्थभाव रखना भी दया है, अनुकम्पा है। किन्तु यह भी परदया ही है। प्राणीमात्र के प्रति वैरभाव छोड़कर निष्कषायभाव हो जाना भी पर अनुकम्पा का ही श्रेष्ठरूप है। “अनुकम्पा त्रिप्रकारा धर्मानुकम्पा, मिश्रानुकम्पा, सर्वानुकम्पाचेति।" परदया तीनप्रकार की है - एक सकलसंयमी मुनिराजों के प्रति जो दयाभाव आता है, वह धर्मानुकम्पा है। दूसरी - देशव्रती संयतासंयत नैष्ठिक श्रावकों के प्रति उत्पन्न हुए अनुकम्पा के भावों को मिश्रानुकम्पा कहते हैं और तीसरी - सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीव सम्पूर्ण जीवों पर, प्राणीमात्र पर जो दयाभाव रखते हैं, उसे सर्वानुकम्पा कहते हैं। गूंगे-बहरे, लूले-लंगड़े, अंधे-कोड़ी, दीन-निर्धन, रोगी और घायल व्यक्तियों को देखकर, विधवा, अनाथ, असहाय, अबला और सताई हुई नारियों को देखकर, लुटे-पिटे, चीत्कार करते, रोते-बिलखते आर्तनाद करते, सुरक्षा की भीख मांगते मानवों को देखकर, कटते-पिटते, मरते-मारते, भूखे-प्यासे, तड़फते, भयाक्रान्त पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़ों को देखकर तथा सबल पशुओं द्वारा निर्बल पशुओं को जीवित निगलते देखकर, मछलियों, मुर्गे-मुर्गियों व भेड़-बकरियों को धीवरों व कसाइयों के हाथों निर्दयता पूर्ण व्यवहार करते देखकर जो हृदय में करुणा का स्रोत प्रवाहित होता है, दिल दहज जाता है, मन रो पड़ता है, हरतरह से उन दुःखी प्राणियों की मदद सहायता करने की तीव्र भावना होती है, उस भावना का तीसरी सर्वानुकम्पा कहते हैं। जिनके हृदय में जीवों के प्रति दयाभाव नहीं है, उनके हृदयों में धर्म कैसे ठहर सकता है। यह दयाभाव ||G 4s NEF EFF
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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