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________________ GREEFFFFy सर्वज्ञ समदर्शी सुपारस, शिवमग बताते जगत को। सप्तम सुपारस है वही, भगवन बनाते भगत को ।। पत्थर सुपारस है वही, सोना करै जो लोह को। भगवन सुपारस है वही, भस्मक करै जो मोह को ।। तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के पूर्व भवों का परिचय कराते हुए आचार्य गुणभद्र लिखते हैं कि धातकी खण्ड के पूर्व विदेह क्षेत्र में सीतानदी के उत्तर तट पर सुकच्छ नामक देश है। उसके क्षेमपुर में नन्दिषेण राजा राज्य | करता था। पुण्योदय से यद्यपि उसे सभी प्रकार की अनुकूलता थी, वह पूर्ण निरोग, बलिष्ठ, अजातशत्रु था, विशाल राज्य से युक्त, आज्ञाकारी नौकर-चाकर सभी कुछ उसके अनुकूल था। इसप्रकार वह श्रीमान्, बुद्धिमान, राजा बन्धु-बान्धवों तथा मित्रों के साथ राज्यसुख का अनुभव करता था। तथापि वह संसार के सुख को क्षणिक नाशवान और आकुलता उत्पन्न करनेवाला जानकर संसार-शरीर और भोगों से विरक्त हो गया। आत्मज्ञानी तो वह था ही, संयोगों की क्षणिकता एवं संसार की असारता देख उसे वैराग्य हो गया। वह विचार करने लगा कि “यह जीव दर्शनमोह और चारित्रमोह के कारण मन-वचन-काय की विपरीत प्रवृत्ति से कर्मों को बांधकर उनसे प्रेरित हुआ चारों गतियों में भटकता है। इस अनादिनिधन दुखद संसार में चिरकाल से चक्र की तरह भ्रमण करता हुआ दुःख भोगता है। दैवयोग से कदाचित् काललब्धि पाकर दुर्लभ मोक्षमार्ग पाता है, फिर भी मोहित हुआ स्त्रियों के साथ क्रीड़ा करता है। मैं भी उन्हीं में एक हूँ, अत: मुझे भी बारम्बार धिक्कार है।"
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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