SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ BREE F इसतरह हमें पापरूप कीचड़ से निकालने एवं मोक्षमार्ग की पात्रता प्राप्त कराने के लिए सारी वस्तुस्थिति का यथार्थ चित्रण हमारे सामने प्रस्तुत है, अब हमारा दायित्व है कि हम श्रावकाचार को यथार्थरूप में अपनाकर जिनवाणी को सार्थक करें। इसप्रकार तीर्थंकर पद्मप्रभ धर्मोपदेश द्वारा भव्यजीवों को मोक्षमार्ग में लगाते थे। आयु के अन्तिम काल में वे सम्मेदशिखर पर पहुँचे । वहाँ उन्होंने एक माह का योग निरोध किया तथा एक हजार राजाओं के साथ प्रतिमायोग धारण कर फाल्गुन कृष्णा चतुर्थी के दिन शाम को चतुर्थ शुक्लध्यान के द्वारा शेष कर्मों का नाश कर निर्वाण पद प्राप्त किया। उसीसमय इन्द्रादि देवों ने आकर निर्वाणकल्याणक की पूजा की। जो पहले सुसीमा नगरी के अधिपति अपराजित नामक राजा हुए फिर तप धारण कर विश्वकल्याण की भावना भाते हुए तीर्थंकर नामकर्म का बन्ध करके अन्तिम नव ग्रैवेयक में अहमिन्द्र हुए और तदनन्तर कौशाम्बी नगरी में अनन्त गुणों सहित पद्मप्रभ तीर्थंकर हुए। वे पद्मप्रभ स्वामी हम सबके कल्याण में निमित्त बनें - यह मंगल भावना है। IFE 19 दीवारों के भी कान होते हैं। अत: ऐसी बात कहना ही नहीं चाहिए, जिस बात को किसी से छिपाने का विकल्प हो और प्रगट हो जाने का भय हो। जो भी बातें कहो, वे तौल-तौल कर कहो, ऐसा समझ कर कहो, जिन्हें सारा जगत जाने तो भी आपको कोई विकल्प न हो, भय न हो; बल्कि जितने अधिक लोग जाने, उतनी ही अधिक प्रसन्नता हो। - सुखी जीवन, पृष्ठ-३१ FFER
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy