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जहाँ तक बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या है, उसे प्रकृति स्वयं संतुलित रखती है। मनुष्यों को इसकी चिन्ता करने की जरूरत नहीं है तथा अकेला अन्नाहार राष्ट्र की आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर सकता, यह तर्क भी निराधार है; क्योंकि मांसोत्पादन करने के बजाय हम अन्नोत्पादन का ही अभियान क्यों न चलाएं? कितनी जमीन बिना जुती यों ही बंजर पड़ी है। हम चाहें तो सब समस्याएँ सुलटा सकते हैं, बशर्ते यदि पु हमें मांसाहार की हानियाँ समझ में आ जावें ।
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जहाँ तक मांसाहारी सिंह को धर्मोपदेश देने की बात एवं पात्रता का प्रश्न है वह एक विशेष परिस्थिति थी - वह सिंह तीर्थंकर का जीव था, उसके भव का अन्त निकट था, चारणऋद्धिधारी मुनिराज ज्ञानी थे । | वे उस जीव की पात्रता से सुपरिचित थे, अत: उन्हें उपदेश देने का भाव आया और उनका निमित्त पाकर उस सिंह ने पश्चाताप के आंसू बहाकर प्रायश्चित्त किया और व्रती बन गया। यदि ऐसा कोई भव्य पात्र जीव हो तो यह अपवाद है, उसे उपदेश देने में कोई हानि नहीं; किन्तु इस बहाने मांसाहार करते-करते कोई स्वछन्दता पूर्वक जिनवाणी सुनने की बात करे तो ठीक नहीं है। दूसरी बात सिंह को मांसभक्षण करते हुए सम्यक्त्व नहीं हुआ था; अपितु मांस का त्याग करने पर सम्यक्त्व हुआ था ।
अत: हमारा कर्तव्य है कि हम सब इसकी अधिक से अधिक चर्चा करें और लोगों को सत्य ज्ञान करायें, ताकि मांसाहार से होनेवाली हिंसा के पाप और शारीरिक स्वास्थ्य की हानि से बचा जा सके।
मधुत्याग मधु (शहद) मधु मक्खियों द्वारा संचित फूलों का रस है, पर वास्तव में देखा जाये तो यह अनेक अभक्ष्य पदार्थों का एक ऐसा घृणित मधुर मिश्रण है, जिसमें न केवल फूलों का रस है, वरन् इसमें मधुमक्खियों का मृत कलेवर, उनके अंडे और भ्रूण भी मिले होते हैं, मधु मक्खियों का मल-मूत्र भी मिला होता है और मधु मक्खियों के मुँह की लार भी मिली होती है, क्योंकि मुँह में वे फूलों का रस चूस - चूस कर लाती हैं।
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मधु प्राप्त करने की प्रक्रिया से कौन परिचित नहीं है ? मधु प्राप्त करने का अर्थ है लाखों मधु मक्खियों की दर्दनाक मौत, हजारों को बे-घर करना तथा असंख्य अंडों और भ्रूणों को निर्दयतापूर्वक मसल देना ।
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