________________
इसी विष्णुपुराण में आगे मांसाहार के त्याग का सुफल बताते हुए कहा जायेगा कि -
"सर्वमांसानि यो राजन्!, यावजजीवं न भक्षयेत् ।
स्वर्गे स विपुलं स्थानं, प्राप्नुयात् नैव संशयः ।। हे राजन् ! जो किसी भी जीव के मांस को जीवनपर्यन्त नहीं खाता; वह नि:संदेह स्वर्ग में ऊँचे दर्जे का देव होता है।
मांसाहार का निषेध करते हुए हिन्दूधर्म के ही तीसरे प्रसिद्ध ग्रन्थ मनुस्मृति में तो यहाँ तक कहा मिलेगा कि - "जिस प्राणी का मांस मैं यहाँ खाता हूँ, वही प्राणी परलोक में मेरा मांस खाता है। यही मांस की | मांसता है - ऐसा मनीषियों ने कहा है।
चारित्रसार में आये हुए श्रावकाचार प्रकरण में भी यही भाव प्रगट करते हुए कहा जायेगा कि "मांसाहारी | यह क्यों नहीं सोचता अथवा वह इस बात को क्यों भूल जाता है कि जिस पशु-पक्षी का मांस वह खा रहा है, वही पशु-पक्षी जब परलोक या अगले जन्म में मेरी जीवित अवस्था में ही मेरा मांस नोंच-नोंच कर खायेगा, उससमय मुझ पर क्या बीतेगी? इसीलिए तो कहा गया है कि - __ “आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत् अर्थात् जो दूसरों का व्यवहार स्वयं को अच्छा न लगे, वैसा व्यवहार हम दूसरों से न करें।" मांसाहारी पुरुषों की साधुजन भी निंदा करते हैं और वह परलोक में भी भारी दुःख भोगता है।
मांसाशिनं साधवो निन्दन्ति, प्रेत्यच दुःखभाग भवेत्।। फिर भी न जाने उसकी बुद्धि पर कैसे पत्थर पड़ गये हैं, जिसके कारण उसे अपना हिताहित ही भासित नहीं होता। यह भी मांसाहार का ही दुष्परिणाम है, जो उसकी बुद्धि कुंठित हो गई है और अपने भलेबुरे का ज्ञान भी नहीं रहा है।"
TERNER