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॥ हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि मद्य सब बुराइयों की मूल जड़ है। सब पापों की अगुआ | है; इसके सेवन से मनुष्य को हिताहित का ज्ञान नहीं रहता तथा हिताहित का ज्ञान न रहने से मानव संसार रूपी जंगल में भटकानेवाला कौन-सा पाप नहीं करता ? अर्थात् सभी पाप करता है।
लोक में यह कथा प्रसिद्ध रहेगी कि मद्यपान से यादव बर्बाद हो गये और जुआ खेलने से पाण्डव।" जैनेतर धर्मग्रन्थों में भी मद्यपान का निषेध किया जायेगा। महाभारत में कहा जायेगा कि -
मद्य तीन प्रकार की होती है, गौडी, पेष्टी व माध्वी। इन तीनों में से जैसी एक, वैसी ही सब। अत: ब्राह्मणों को यह सुरापान नहीं करना चाहिए। इसी ग्रन्थ में आगे कहा जायेगा कि जो ब्राह्मण एकबार भी मद्य पीता है, उसका ब्राह्मणत्व नष्ट हो जाता है, वह शूद्र हो जाता है।
मांसत्याग - यह तो सब जानते हैं कि प्राणियों की हिंसा किए बिना मांस उत्पन्न नहीं होता तथा यह भी सभी लोग अच्छी तरह समझते हैं कि प्राणीघात करना महापाप है, इससे स्वर्ग नहीं मिलता; इसलिए सुखाभिलाषी को मांस का खाना, खिलाना त्याग देना चाहिए।
मांस के लिए जीवों को मारनेवाला, मांस का दान देनेवाला, मांस पकानेवाला, मांस खाने का अनुमोदन करनेवाला, मांसभक्षण करनेवाला मांस को खरीदने-बेचनेवाला ये सभी दुर्गति के पात्र हैं।
प्रश्न - मांस खानेवाले ने तो जीव हिंसा की नहीं है, उसे पाप क्यों लगेगा ?
उत्तर - जो मनुष्य अपने शरीर की पुष्टि की अभिलाषा से मांस खाते हैं, वस्तुत: वे ही प्राणियों के घातक हैं; क्योंकि मांस खानेवालों के बिना जीववध करनेवाला इस लोक में कभी कोई नहीं देखा गया। ____ मांस की मांग ही जीववध को बढ़ावा देती हैं। अत: मांसाहारी ही मूलत: जीव हिंसा के दोषी हैं। जो व्यक्ति शरीर के पोषक सुखद तात्त्विक उत्तम अन्नाहार और फलाहार शाक-सब्जी आदि भोज्य पदार्थों को छोड़कर मांस खाने की इच्छा करते हैं, वे मानों हाथ में आये हुए अमृत रस को छोड़कर कालकूट विष को खाने की इच्छा करते हैं।
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