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________________ REFFFFFFF सिंह को चारणऋद्धि के धारक मुनियों द्वारा उपदेश कैसे दिया जा सकेगा? और उसे सम्यक्त्व की प्राप्ति श || कैसे होगी? उत्तर - गुड़, जौ, महुआ, द्राक्ष आदि अनेक वस्तुओं को सड़ाकर मद्य बनती है। वस्तुओं को सड़ाने से उसमें असंख्य/अगणित जीव उत्पन्न हो जाते हैं। मद्यपान करने से उनकी दर्दनाक मौत का महापाप मद्यपान करनेवाले को लगता है, जिसका फल नरक-निगोद है। मद्यपान से न केवल पाप होता है, साथ में इस मद्य के सेवन से सर्वप्रथम तो बुद्धि भ्रष्ट होती है, बुद्धि भ्रष्ट होने से व्यक्ति विवेकशून्य हो जाता है। मद्य कामोत्तेजक होती है, इसे पीनेवाला कामासक्त हो जाता है। परिणाम यह होता है कि वह अन्याय-अनीति रूप क्रियाएँ करने लगता है। इससे उसे संसार में सदा संक्लेश और दुःख ही दुःख उत्पन्न होता है। मद्यपान करनेवाले की प्रतिष्ठा तो धूल-धूसरित होती ही है, स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मद्यपान करनेवाला व्यक्ति नशे में अपने हृदय के सब भावों को लीलामात्र में ही प्रगट कर देता है। मद्यपान से मनुष्य की कान्ति, कीर्ति, बुद्धि और सम्पत्ति क्षणमात्र में विनाश को प्राप्त हो जाती है। जो मदिरा इन्द्रियों के सम्पूर्ण विकास को रोक देती है, शरीर में शिथिलता उत्पन्न कर देती है और चेतनता को निर्दयतापूर्वक हर लेती है - ऐसी मदिरा क्या विष के समान नहीं है ? यह सुरा सैंकड़ों पापों की जड़ है, इसका सेवन मन को विमोहित कर देता है। विमोहित चित्तवाला पुरुष सभी शुभकार्य करना छोड़ देता है, धर्म को छोड़ देता है, जीवघात करने लगता है। इसतरह पाप में प्रवृत्त हुआ प्राणी मरकर नरक में चला जाता है, नारकी बन जाता है। शराबी मनुष्य मानसिक भ्रम के कारण अपनी माँ को भी सेवन करने में तत्पर हो जाता है। शराब के त्याग की प्रेरणा देते हुए जैनाचार्य समय-समय पर उपदेश देंगे कि मोह की कारण होने से, सांसारिक आपदाओं का आलय होने से एवं लोक व परलोक में दोष कारक होने से मानव को इस मद्यपान | ५ FFER
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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