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________________ ६८ श ला का पु रु pm IF F 40 ष उ रा र्द्ध इस वर्ग के प्रतिपादक आचार्य गुणभूषण हैं। इसप्रकार उपर्युक्त अध्ययन से यह तो स्पष्ट हो ही गया कि मद्य-मांस-मधु एवं पंच - उदुम्बर फलों का त्याग तो सबको इष्ट है ही, साथ ही अपने-अपने देशकाल व परिस्थितियों के अनुसार जब / जहाँ / जिस पाप की प्रचुरता या दुर्व्यसनों का इतना बाहुल्य देखा जायेगा कि उनके त्यागे बिना धर्मश्रवण व ग्रहण की पात्रता ही नहीं आती, तो उनके त्याग की अनिवार्ययता देखकर उन प्रवृत्तियों के त्याग पर विशेष बल दिया है और दिया जायेगा । वैसे अष्ट मूलगुणों में उन सब उक्त अनुक्त पापों का त्याग तो अन्तर्गर्भित है ही, जो श्रावकधर्म के मूल आधार हैं, पर वर्तमान समय को देखते हुए आचार्यों द्वारा प्रतिपादित पाक्षिक श्रावकों के कर्तव्यों में कुछ | महत्त्वपूर्ण कर्तव्य इसप्रकार हैं - (१) मधु, मांस और मद्य आदि सभी प्रकार की मादक वस्तुओं का त्याग, (२) रात्रि में अन्नाहार का त्याग, (३) कंदमूल और उदुम्बर फलों का त्याग, (४) बिना छने जलपान का त्याग, (५) बाजारु अपेय | एवं अखाद्य पदार्थों का त्याग, (६) जुआ आदि सप्त व्यसनों का त्याग, (७) द्विदल आदि अभक्ष्य भक्षण का त्याग, (८) सामान्य स्थिति में प्रतिदिन देवदर्शन और सुबह-शाम स्वाध्याय करने का नियम, (९) वीतरागी देव, निर्ग्रन्थ गुरु और अहिंसामय धर्म में दृढ़ श्रद्धा । इन उपर्युक्त कर्तव्यों के पालन किए बिना सच्चा पाक्षिक श्रावकपना भी नहीं होता । वर्तमान चौबीसी के छठवें तीर्थंकर पद्मप्रभ की धर्मसभा में कुल तीन लाख तीस हजार मुनि सदैव उनकी दिव्यध्वनि का लाभ लेते थे । इनके अतिरिक्त श्रावकों, तिर्यंचों एवं देवों की संख्या असंख्यात थी । एक श्रोता के मन में प्रश्न उठा - मद्य-मांस-मधु में ऐसा क्या दोष है, जिससे धर्म सुनने का पात्र भी नहीं हो सकता ? मद्य-मांस-मधु खाने-पीनेवाले को धर्म सुनने का निषेध क्यों किया ? क्या भगवान के | समवशरण में मांसाहारी पशु नहीं होते ? यदि ऐसा है तो भगवान महावीर के दसभव पूर्व के जीव मांसाहारी ती र्थं प द्म प्र भ पर्व
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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