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६७|| देश कहा जाता है, शुद्ध सात्त्विक शाकाहार ही जिसका मुख्य आहार रहा है, वह पश्चिमी सभ्यता की देखादेखी मद्य-मांस की ओर अग्रसर होगा।
हमें अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए एकबार पुन: अपने ऋषियों, मुनियों एवं मनीषियों द्वारा प्रतिपादित मूलगुणों के विभिन्नरूप एवं उनका समन्वयात्मक दृष्टिकोण समझकर, उन्हें अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाना होगा, तभी हम सच्चे श्रावक बन सकेंगे।
प्रश्न - आगम में मूलगुणों का वर्गीकरण किसप्रकार किया जायेगा?
उत्तर - विक्रम की दूसरी सदी से लेकर श्रावकाचारों में उपलब्ध मूलगुणों की विविध व्याख्याओं का वर्गीकरण आठ वर्गों में हो जाता है, जो इसप्रकार होगा -
(१) “मद्य-मांस-मधु और पाँच-उदुम्बर फलों का त्याग" इस वर्ग के प्रतिपादक आचार्यों में आचार्य अमृतचन्द्र, पद्मनन्दि, सोमदेव, देवसेन, पण्डित आशाधर एवं पाण्डे रायमल्ल प्रमुख होंगे।
(२) “मद्य-मांस-मधु एवं पाँच पापों का स्थूल त्याग' इस वर्ग के समर्थक आचार्य समन्तभद्र एवं शिवकोटि होंगे।
(३) “मधु-मांस का त्याग, पाँचों पापों से विरति एवं जुआ खेलने का त्याग।" इस वर्ग के प्रतिपादक आचार्य जिनसेन (द्वितीय) प्रमुख होंगे।
(४) “पाँच-उदुम्बर फल, सात-व्यसन, अचार-मुरब्बा तथा फूल व फलों से बने गुलकन्द आदि का त्याग।" इसके प्रतिपादक आचार्य वसुनन्दि हैं।
(५) “मद्य-मांस-मधु पाँच उदुम्बर फल एवं रात्रिभोजन त्याग।" - आचार्य अमितगति । (६) “मद्य-मांस-मधु, जुआ खेलना, वेश्यागमन एवं रात्रिभोजन त्याग।" - आचार्य रविषेण । (७) “पाँच-उदुम्बर फल एवं सात व्यसनों का त्याग' - आचार्य गुणभूषण।