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________________ श ला ६४ होगी, उनमें से पुरुषार्थसिद्धयुपाय एवं रत्नकरण्ड श्रावकाचार में उल्लिखित मद्य - मांस-मधु व पंच उदुम्बर फलों के त्याग तथा मद्य-मांस-मधु व पाँच पापों के स्थूल त्यागरूप अष्टमूलगुण ही अधिक प्रचलित रहेंगे; | क्योंकि जनसाधारण में चरणानुयोग के ग्रन्थों में ये दोनों ग्रंथ ही स्वाध्याय व पठन-पाठन में रहेंगे। दूसरे, जहाँ हिंसा के त्याग का नियम ले लिया गया हो, वहाँ कोई हिंसा के आयतन रात्रिभोजन, अनछना जल आदि का उपयोग भी कैसे कर सकता है ? अत: अन्य मनीषियों द्वारा प्रतिपादित विविध मूलगुण भी इन्हीं में अन्तर्गर्भित हैं और आगे भी होते रहेंगे । इसकारण शेष अचर्चित रह जायेंगे । का पु रु pm F F ष उ त्त रा र्द्ध पुराण साहित्य में सर्वाधिक पढ़े जानेवाले पद्मपुराण, महापुराण एवं हरिवंश पुराणों में आगत श्रावकाचार | के प्रकरण में अष्ट मूलगुणों की जो चर्चा होगी, वहाँ भी देशकाल की परिस्थितियों के अनुसार मद्य-मांस| मधु के त्याग के साथ जुआ, रात्रि भोजन, वेश्या संगम एवं परस्त्री रमण के त्याग को अष्ट मूलगुणों में विशेषरूप से उल्लेख किया जायेगा । महापुराण के कर्ता जिनसेनाचार्य आठ की संख्या कायम रखने के कारण मधु-मांस एवं पाँच उदुम्बर फलों के साथ हिंसा आदि पाँचों पापों को एक गिनकर आठ मूलगुण कहेंगे । ध्यान रहे, उनके द्वारा मद्यत्याग की जगह हिंसादि पापों के त्याग को स्थान दिया जायेगा, जो उचित ही है । इससे यह नहीं समझना कि उन्हें मद्य-त्याग कराना इष्ट नहीं होगा। मद्य तो सामाजिक दृष्टि से भी वर्जित | रहेगा ही; अतः मद्य के कथन को गौण करके उसके स्थान पर पापों के त्याग को मुख्य किया है और किया जाता रहेगा। चामुण्डराय चारित्रसार में अपने देशकाल के अनुसार हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्म और परिग्रह के स्थूल तथा जुआ, मांस और मद्य सेवन के त्याग को अष्टमूलगुण नाम देंगे। इसकारण इनके कथन में मधुत्याग गौण हो जायेगा । यहाँ यह ज्ञातव्य है कि चारित्रसार का कथन मूलत: आदिपुराण से उद्धृत होगा। एक ही ग्रन्थ में दो ती र्थं क र प प्र भ पर्व
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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