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________________ GEE FOR "FF 0 इसप्रकार जब महाराज पद्मप्रभ को राज्य प्राप्त हुआ तब संसार मानों सोते से जाग गया था, पूर्णरूप | से अपने-अपने कर्तव्यों के प्रति जागरुक हो गया था। यही राजाओं की राज्यशासन-प्रशासन की सफलता है। समस्त प्रजा सुख-शान्ति से रहे, भयाक्रान्त न रहे। इसप्रकार सफलता से राज्य शासन के चलते हुए, उन्हें एक दिन वैराग्य हो गया। कहते हैं कि कारण के बिना कार्य नहीं होता। यह बात पूर्ण सत्य है। महाराज पद्मप्रभ को सोलह पूर्वांग कम एक लाख पूर्व की आयु रह गई, तब किसी समय दरवाजे पर बंधे हुए हाथी की दशा सुनने से उन्हें अपने पूर्व भवों का ज्ञान हो गया और तत्त्वों को जाननेवाले महाराज पद्मप्रभ संसार को असार जानकर संसार से विरक्त हो गये। इसप्रकार धिक्कारने लगे कि प्रजा आश्चर्यचकित हो आँख फाड़कर देखती रह गई। | वे विचारने लगे कि “इस संसार में ऐसा कौन-सा पदार्थ है, जिसे मैंने देखा न हो, छुआ न हो, सूंघा न हो और खाया न हो। यह जीव अपने पूर्वभवों में जिन पदार्थों का अनन्तबार उपभोग कर चुका है, उन्हें ही बार-बार भोगता है; अत: अभिलाषा रूप सागर में गोते खाते इस जीव से क्या कहा जाये ? यह शरीर रोगरूपी सर्पो की वांमी है। यह जीव अपनी आँखों से स्पष्ट देख रहा है कि हमारे इष्टजन इन्हीं रोगरूपी सांपों से डसे जाकर नष्ट हो गये हैं, हो रहे हैं और होते रहेंगे। फिर भी यह इस रोग के घर रूप इस शरीर से मोह कर रहा है। यह बड़ा आश्चर्य है। जो हिंसा-झूठ-चोरी आदि पापों में रचा-पचा है, इनके दुष्परिणाम पर ध्यान ही नहीं देता और इन्द्रियों के विषय, जो प्रत्यक्ष आकुलता के जनक हैं, उन्हें सुख समझकर भोग रहा है, उसके लिए विचारणीय यह है कि ये भोग भुजंग के समान दुःखद हैं। अत: जिस धर्म साधना से पुण्य और पाप - दोनों कर्म बन्धनों का अभाव होकर अविनाशी और निराकुल सुख मिलता है, उसे शीघ्र धारण करें। स्वयं को समझदार समझेने वाले व्यक्तियों को तो कम से कम इस ओर ध्यान देना ही चाहिए। इसप्रकार संसार, शरीर और भोगों से विरक्त महाराज पद्मप्रभ के समाचार ज्ञात कर लोकान्तिक देव ॥५ FFER
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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