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कम्प्यूटर आदि जो छोटे-मोटे चमत्कारिक कार्य हैं। हमारे देखते-देखते यह सब कैसे हो रहा है? हमें अभी भी पूरा विश्वास नहीं हो पाता । कुछ दिन पूर्व हम स्वयं सुना करते थे कि लाखों मीलों/किलोमीटरों दूर बैठे व्यक्तियों की बातें, आवाजें हम सुन सकेंगे। अपनी बात उनसे कह सकेंगे तो क्या गप्प-सी नहीं लगती थी? फिर सुना कि न केवल सुन सकेंगे, बल्कि उनका बोलते हुए चेहरा भी देख सकेंगे। तब हमें उन बातों पर हँसी आती थी; अस्तु: ऐसे एक नहीं और भी सैंकड़ों बातें हैं जो प्रत्यक्ष होते हुए भी हमें अभी भी चमत्कार से लगते हैं। इसीतरह पुराणों में पढ़ते हैं, आकाशगामिनी विद्या होती है, अग्निबाण होते हैं, उस पर किसी को विश्वास नहीं होता; किन्तु जैसे वैज्ञानिक चमत्कार सत्य हो सकते हैं; वैसे ही पुराणों के कथन भी सत्य ही हैं।
संभव है भविष्य में पुन: पत्थर युग आयेगा। किसी सनकी दिमाग के निमित्त से विनाशकारी एटम बम्बों के विस्फोट से पुन: प्रलय हो जायेगा, तब आज के युग की बातें पुन: कल्पित-सी लगने लगेंगी। जो व्यक्ति किसी भी धर्म में विश्वास रखता है, वह पौराणिक कथनों में सहसा अविश्वास नहीं कर सकता।
जब वानर, गजानन, बराह (सूकर) बावनिया ( मात्र ५२ अंगुल के शरीर वाले) जैसे विचित्र प्राणी भगवान के अवतार हो सकते हैं, जब सारे विश्व का भविष्यदर्शन श्रीकृष्ण के मुख में किया जा सकता है, उन सब बातों पर लोग श्रद्धा और विश्वास कर सकते हैं, उन्हीं के आधार पर हम स्वर्ग-नरक के अस्तित्व को स्वीकार कर सकते हैं तो तीर्थंकरों के अतिशय और चक्रवर्तियों के वैभव की बातों में हमें विश्वास क्यों नहीं होगा? ____ वस्तुत: कथानक तो कुनेन पर चढ़ी चीनी (शक्कर) की भांति है। आचार्य तो वस्तुत: हमें कथानकों के माध्यम से जैन तत्त्वज्ञान देना चाहते थे। कुछ आचरण करने योग्य बातें बताना चाहते हैं, कुछ नैतिकता के पाठ पढ़ाना चाहते हैं, कुछ सांसारिक सुखों के मोह से हमारा भ्रमभंग करना चाहते हैं, हमें राग से वैराग्य की ओर ले जाना चाहते थे; अत: जो बातें आज पाठकों को असंभव-सी लगती हैं और हमारे पास आगम के अलावा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उन्हें तर्क, युक्ति और प्रत्यक्ष के आधार पर सत्य सिद्ध करने के साधन नहीं हैं तो हम प्रथमानुयोग में उल्लिखित उन बातों को गौणरखकर भी मूल प्रयोजन को प्रभावक ढंग से प्रस्तुत करें तो हम प्रथमानुयोग के प्रयोजन में सफल हो सकते हैं।
देखो, एक नीतिकार ने लिखा है - काल की कोई अवधि नहीं, वह निरवधि है, असीमित है, पृथ्वी भी |
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