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अपनी बात ॥ सम्पूर्ण जिनवाणी चार अनुयोगों में निबद्ध है। १. प्रथमानुयोग, २. चरणानुयोग, ३. करणानुयोग और ४. | द्रव्यानुयोग । इनमें प्रथमानुयोग को सबसे सरल माना जाता है और शास्त्रों में ऐसा लिखा भी मिलता है कि प्रथम अर्थात् अव्युत्पन्न लोगों के लिए जो अनुयोग है, वह प्रथमानुयोग है। पण्डित टोडरमलजी ने भी यही कहा है। पण्डित टोडरमलजी के मोक्षमार्गप्रकाशक का पूरा आठवाँ अधिकार चारों अनुयोगों के स्वरूप आदि को स्पष्ट करने के लिए ही समर्पित है। जिसे मैंने अनेक बार पढ़ा है और मैं उनकी प्रतिभा तथा लेखन की अपूर्वता और अद्भुत सूक्ष्म कथन का कायल हूँ, मेरा पाठकों से विनम्र निवेदन है कि प्रथमानुयोग का सही प्रयोजन समझने के लिए आप मोक्षमार्गप्रकाशक का आठवाँ अधिकार बारम्बारपढ़ें।
जब मैंने प्रथमानुयोग को लिखने का साहस किया, तब उसे बारीकी से पढ़ने पर मुझे ऐसा लगा कि यह अनुयोग सर्वज्ञता की श्रद्धा में संपूर्णत: समर्पित हुए बिना समझ में नहीं आ सकता और सर्वज्ञता का सच्चा स्वरूप समझने के लिए और उसके प्रति अटल श्रद्धा हेतु कषाय की मन्दता अति आवश्यक है; क्योंकि हठाग्रही और पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यक्ति प्रथमानुयोग को नहीं समझ सकते। उसे तो प्रथमानुयोग के कथनों में कदम-कदम पर अश्रद्धा होनेवाली है; क्योंकि आज की दुनिया प्रथमानुयोग की दुनिया से बिल्कुल भिन्न है। न तो भौगोलिक सुमेल है और न प्राणियों की संख्या संबंधी सुमेल है, पृथ्वी का विस्तार, मानवों की उम्र, ऊँचाई आदि सभी कुछ आज के परिप्रेक्ष्य में असंगत-सा लगता है; पर असंभव कुछ भी नहीं; क्योंकि आज भी हम बौने और लम्बे लोगों को प्रत्यक्ष देखते हैं। डायनासोर की हड्डियों के ढांचों के अवशेषों से भी बहुत कुछ प्राचीनता सत्य प्रतीत होती है। ____ मैं कुछ नास्तिक विचारधारावालों को छोड़कर उन सभी श्रद्धालुओं से जो किसी भी धर्म में विश्वास रखते हैं, उनसे पूछना चाहता हूँ कि “जो बातें आज विज्ञान के युग में प्रत्यक्ष देख रहे हैं, यदि ये ही सब बातें इन | क्रान्तिकारी आविष्कारों के पूर्व किसी पुराने युग में हमें पढ़ने को मिलतीं तो क्या हमें विश्वास हो जाता ? हम | उन्हें सत्य मान लेते? जैसे कि रेलगाड़ी से लेकर राकेट तक का आविष्कार, टेलीफोन से मोबाइल, टी.वी. से |
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