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॥ संक्रामक रोग फैलानेवाली होटलों की चाय-काफी भी छूट जाती है; क्योंकि ये भी अनछने पानी से |
बनते हैं। | उसे कोई धोखा-धड़ी से बाजारु अखाद्य या अपेय वस्तुएँ नहीं खिला-पिला सकता; क्योंकि अब वह
अनछने पानी का त्यागी होने से बाजारु वस्तुएँ खाता ही नहीं है। | इसतरह छने पानी से दया धर्म के साथ स्वास्थ्य का लाभ भी मिलता है और जीवन भी सुरक्षित होता है। इन सबके साथ उसकी जो सामाजिक प्रतिष्ठा बनती है, वह भी कोई कम नहीं है।
इसतरह छने पानी पीने से लाभ ही लाभ है, हानि कुछ भी नहीं; अत: सभी को छना पानी ही पीना || चाहिए।
सम्मदेशिखर पहुँचकर प्रभु एकमास तक दिव्यध्वनि बंद करके ध्यानारूढ़ हो गये और प्रतिमा योग को धारण कर वैशाख शुक्ल षष्ठी के दिन प्रात:काल अनेक मुनियों के साथ परमपद को प्राप्त किया।
जो पहले रत्नसंचय नगर के राजा महाबल हुए, तदनन्तर विजय नामक अनुत्तर विमान में अहमिन्द्र हुए; फिर ऋषभनाथ के ही वंश में अयोध्या नगरी के अधिपति राजा हुए। वे अभिनन्दननाथ हमारे कल्याण में निमित्त बनें।
जिन्होंने निश्चय और व्यवहार नयों से विभाग कर समस्त पदार्थों का विचार किया। अपने भव की विभूति का नाश करने के कारण देवों ने जिनकी स्तुति की, जो तीनों लोकों के स्वामी कहलाकर भी अपने स्वभाव के स्वामी हैं। संसारी जीवों को संसार से पार उतारने में जिनकी दिव्यवाणी समर्थ सिद्ध हुई, उन अभिनन्दननाथ को शत शत नमन । ॐ नमः ।
जब पाप का उदय आता है, तब परिस्थिति बदलते देर नहीं लगती। जो अपने गौरव के हेतु होते हैं, सुख के निमित्त होते हैं, वे ही गले के फन्दे बन जाते हैं। - इन भावों का फल क्या होगा, पृष्ठ