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________________ ५७ श ला का 5 pm F F पु रु ष उ र्द्ध मछली मारनेवाला धीवर मछलियाँ मार-मार कर एक वर्ष में जितना पाप करता है, बिना छना पानी काम में लेनेवाला व्यक्ति एक दिन में उतने पाप का भागी होता है। क्योंकि - एगम्मि उदगबिंदुमि, जे जीवा जिणवरेहिं पण्णता । जड़ सरिसव मित, जम्बूदीवे ण मायंति ।। जल की एक बूँद में इतने सूक्ष्मजीव - त्रसजीव होते हैं कि यदि वे आकार में सरसों के दाने के बराबर हो जावें तो जम्बूद्वीप में नहीं समायेंगे - ऐसा जिनेन्द्रदेव ने कहा है। अत: अहिंसक आचरण के लिए तथा मांस के अतिचार (दोष) से बचने के लिए पानी सदैव छानकर ही काम में लेना चाहिए। कहा भी है - वस्त्रेणाति सुपीनेन, गालितं तत्पिबेज्जलम् । अहिंसाव्रत रक्षाये, मांस दोषाय नोदने ।। अहिंसाव्रत की रक्षा के लिए एवं मांस के दोष से बचने के लिए अत्यन्त मोटे दोहरे छन्ने से छना हुआ ती पानी ही पीना चाहिए । र्थं क पर ध्यान रहे, छन्ने का कपड़ा सूती हो, स्वच्छ, मोटा व दुहरा हो, टेरिकाट न हो, पतला, पुराना एवं मैला न हो। इकहरा व खिरखिरा भी नहीं होना चाहिए; क्योंकि पानी में दो तरह के रोगाणु होते हैं । १. बैक्टरिया और २. वायरस । र इकहरे छन्ने से बैक्ट्रेयिा तो छन जाते हैं; पर वायरस नहीं छनते और दुहरे मोटे सूती कपड़े के छन्ने से | वायरस भी छन जाते हैं; अत: स्वस्थ रहने की दृष्टि से भी पानी सदा दुहरे व मोटे छन्न से ही छानना चाहिए । छने पानी पीने की प्रतिज्ञा लेनेवाला हिंसा के महापाप से तो बचता ही है साथ में सहज ही अनेक बीमारियों से एवं धोखाधड़ी के खतरों से भी बच जाता है। उदाहरणार्थ – उसकी उदर विकार उत्पन्न करने वाली बाजारु मिठाइयाँ खाना भी छूट जाती हैं; क्योंकि | वे सब अनछने पानी से ही बनती हैं। म ति ना थ पर्व
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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