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| जिसप्रकार अच्छी भूमि में बीज बोया जाता है तो उससे विशेष फल का लाभ होता है, उसीप्रकार श | भगवान ने प्रशस्त-अप्रशस्त सभी भाषाओं में भव्य जीवों के लिए दिव्यध्वनि रूप बीज बोया था। उससे ला ||| भव्य जीवों को महान धर्मफल की प्राप्ति हुई।
एक भव्य श्रोता के मन में प्रश्न उठा - प्रभो ! बिना छने पानी पीने में क्या दोष है ? जब घर-घर में नलों द्वारा वाटर बक्स से फिल्टर पानी आयेगा तो बार-बार छानना क्यों आवश्यक है ?
हे भव्य सुनो ! अब आगे विज्ञान के युग में वस्त्र से छने जल की उपयोगिता और अधिक बढ़ेगी। न केवल जैन, अन्यमत वाले भी छना (निर्जन्तुक) पानी पीयेंगे; क्योंकि सूक्ष्मदर्शक यंत्रों से भी सिद्ध हो | जायेगा कि बिना छने पानी में चलते-फिरते असंख्य सूक्ष्म त्रस जीव होते हैं। उन जीवों के उदर में जाने | पर वे तो मरते ही हैं, अनेक उदर रोगों को भी उत्पन्न करते हैं। इसलिए जीव रक्षण और स्वास्थ्य संरक्षण की दृष्टि से वस्त्रगालित जल पीना अत्यावश्यक होगा।
यद्यपि वाटर बक्स से फिल्टर होकर पानी आयेगा; परन्तु प्रति दो घड़ी में पानी में जीव उत्पन्न हो जाते हैं, अत: जब भी पानी पियें, छानकर ही पियें।
केवलज्ञान में भूत एवं भविष्य का ज्ञान भी वर्तमानवत् स्पष्ट जानने में आता है। अतः भाषा में वर्तमानकाल प्रयोग भी निर्दोष समझें।
मनुष्यों को सदा वस्त्र से छना हुआ जल ही पीना चाहिए। अगालित जल पीना पापबन्ध का कारण है। दयालुजनों को स्नान आदि के काम में भी पानी को छानकर ही उपयोग करना चाहिए।
वस्त्रगालित जल में भी एक अन्तर्मुहूर्त के बाद पुन: सम्मूर्च्छन त्रसजीव पैदा हो जाते हैं। एतदर्थ ब्रह्मनेमीदत्त छने और प्रासुक (गर्म) जल की अवधि का ज्ञान कराते हुए कहते हैं कि -
गालितं तोयमप्युच्चै, सन्मूछितर्मुहूर्ततः । प्रासुकं याम युग्माच्च सदुष्णं प्रहराष्टकान् ।।