SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श ला का पु रु ष m IF 595 उ त्त रा र्द्ध राज्य करते हुए जब उन्हें उन्नीस लाख पूर्व बारह पूर्वांग बीत चुके थे, तब अपनी आत्मा में उन्होंने पूर्वोक्त विचार किया, उसीसमय सारस्वत आदि समस्त लौकान्तिक देवों ने अच्छे-अच्छे स्तोत्रों द्वारा उनकी स्तुति की, देवों ने उनका अभिषेक किया और उन्होंने उनकी अभय नामक पालकी उठाई। इसप्रकार भगवान सुमतिनाथ ने वैशाख सुदी नवमी के दिन प्रात:काल वन में एक हजार राजाओं के साथ बेला का नियम लेकर दीक्षा धारण कर ली। संयम के प्रभाव से उसीसमय मन:पर्ययज्ञान उत्पन्न हो गया। दूसरे दिन वे आहार के लिए सौमनस नामक नगर में गये। वहाँ पद्म राजा ने उनका पड़गाहन कर आहार दिया। भगवान सुमतिनाथ ने सर्व पाप की निर्वृत्तिरूप सामायिक संयम धारण किया था। वे मौन से रहते थे। उनके समस्त पाप शान्त हो चुके थे, वे अत्यन्त सहिष्णु थे । उन्होंने छद्मस्थ अवस्था में मात्र बीस वर्ष बिताये । तदनन्तर उसी सहेतुक वन में प्रियंगु वृक्ष के नीचे प्रतिमा योग धारण कर चैत्र शुक्ला एकादशी के दिन सायंकाल उन्होंने केवलज्ञान प्रगट किया। देवेन्द्रों ने उनके केवलज्ञान कल्याणक की पूजा कर मंगल महोत्सव मनाया। सप्त ऋद्धियों के धारक अमर आदि एक सौ सोलह गणधर निरन्तर सम्मुख रहकर उनकी पूजा करते थे, दो हजार चार सौ पूर्वधारी निरन्तर उनके साथ रहते थे। वे दो लाख चौवन हजार तीन सौ पचास उपाध्यायों सहित थे । ग्यारह हजार अवधिज्ञानी उनकी पूजा करते थे । तेरह हजार केवलज्ञानी थे । आठ हजार चार सौ | विक्रिया ऋद्धि के धारक उनका स्तवन करते थे। दस हजार चार सौ पचास मुनि उनकी वन्दना करते थे । | इसप्रकार सब मिलाकर तीन लाख बीस हजार मुनियों से वन्दनीय होकर भी भगवान उन सबसे अप्रभावी एवं परम वीतरागी रहते थे । ती र्थं क र म अनन्तमती आदि तीन लाख तीस हजार आर्यिकायें उनकी अनुगामिनी थीं। तीन लाख श्रावक उनकी ति नित्य नियमित पूजा करते थे । पाँच लाख श्राविकायें उनके साथ रहकर उनकी धर्मसभा में दिव्यध्वनि का | लाभ लेती थी । धर्मसभा में बैठकर तीन गतियों के जीव प्रभु की दिव्यवाणी सुनते थे । ना थ पर्व इसप्रकार देव, मनुष्य और तिर्यंचों द्वारा पूजित सुमतिनाथ प्रभु ने धर्मलाभ सहित अठारह क्षेत्रों में विहार कर भव्य जीवों को धर्मोपदेश दिया।
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy