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________________ FREE F IFE 19 जो जानते हैं सुमतिजिन के, जिनवचन को ज्येष्ठतम । जो मानते हैं सुमति जिन की, साधना को श्रेष्ठतम ।। जिनके परम पुरुषार्थ में, निज आत्मा ही है प्रमुख। वे मुक्तिपथ के पथिक हैं, संसार से वे हैं विमुख। जो व्यक्ति सुमतिनाथ की 'सुमति' (दिव्यध्वनि) को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं, उनके द्वारा प्रतिपादित मत | में ही जिनकी मति प्रवृत्त रहती है, जिनके परम पुरुषार्थ में एक आत्मा की ही प्रमुखता रहती है, उन्हें अल्पकाल में सम्यक् मति की प्राप्ति अवश्य होती है। वे शीघ्र आत्मज्ञानी बनकर अविनाशी मुक्ति लक्ष्मी को प्राप्त करते हैं। उन सुमतिनाथ की आराधना से हमारी मति सुमति बने - हम ऐसी भावना भाते हैं। तीर्थंकर सुमतिनाथ के पूर्वभवों का परिचय कराते हुए आचार्य गुणभद्र कहते हैं कि धातकीखण्ड द्वीप में पूर्व मेरु पर्वत से पूर्व की ओर स्थित विदेहक्षेत्र में सीतानदी के उत्तर तट पर पुष्कलावती नाम का एक देश है। उसकी पुण्डरीक नगरी में रतिषेण नाम का राजा था। वह सम्पत्तिवाला होकर भी सभीप्रकार के दुर्व्यसनों से दूर रहता था। पूर्वोपार्जित पुण्य के फल में प्राप्त विशाल राज्य का न्याय-नीति पूर्वक शासन करता था। वह अजातशत्रु था। उसके सद् व्यवहार और निहँकारी स्वभाव से उसका कोई शत्रु नहीं था। राजा रतिषेण समस्त राजाओं में सर्वश्रेष्ठ और अद्वितीय व्यक्ति था। वह साम और दाम नीति से ही अपना अनुशासन व्यवस्थित रखता था, उसके पुण्य प्रताप से एवं सद् व्यवहार से प्रजा इतनी अनुशासित थी कि उसे दण्ड और भेदनीति का कभी उपयोग ही नहीं करना पड़ा।
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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