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वहाँ एक मास तक स्थिर रहे, वाणी का योग रुक गया और अन्त में अभिनन्दन परमात्मा सम्मेदाचल पर | पधारे। वहाँ एक मास तक स्थिर रहे, वाणी को योग रुक गया और अन्त में शुक्लध्यान द्वारा सर्वप्रकार से योगनिरोध करके, चौदहवें गुणस्थान में शेष अघाति कर्मों का भी क्षय करके आनन्द-टोंक से वैशाख शुक्ला षष्ठी को प्रातः काल मोक्षपद प्राप्त किया ।
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प्रभु के मोक्षगमन से आनन्दित होकर इन्द्रादि देवें ने तथा मनुष्यों ने मोक्षकल्याणक का उत्सव किया। सिद्ध भगवन्तों की परमभक्ति से उन्होंने यह भाव व्यक्त किया कि हमें भी ऐसा मोक्षपद इष्ट है ।
जो पहले विदेहक्षेत्र में रत्नसंचयपुर नगर के महाराजा महाबल थे, पश्चात् रत्नत्रय के संचयपूर्वक मुनि होकर अहमिन्द्र हुए और पश्चात् ऋषभदेव के वंश में अयोध्यानगरी में अभिनन्दन तीर्थंकर के रूप में अवतार लेकर तीन लोक द्वारा अभिनन्दनीय सर्वज्ञ परमात्मा हुए। वे हमारे हित में सनिमित्त बनें । यही मंगल भावना है।
बड़े व्यक्तित्व की पहचान
गम्भीर, विचारशील और बड़े व्यक्तित्व की यही पहचान है कि वे नासमझ और छोटे व्यक्तियों
की छोटी-छोटी बातों से प्रभावित नहीं होते, किसी भी क्रिया की बिना सोचे-समझे तत्काल प्रतिक्रिया प्रगट नहीं करते । अपराधी पर भी अनावश्यक उफनते नहीं हैं, बड़बड़ाते नहीं हैं; बल्कि उसकी बातों पर, क्रियाओं पर शान्ति से पूर्वापर विचार करके उचित निर्णय लेते हैं, तदनुसार कार्यवाही करते हैं और आवश्यक मार्गदर्शन देते हैं।
- इन भावों का फल क्या होगा, पृष्ठ- ३८
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