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________________ ४९ श ES FETUS ला का पु रु ष उ त्त रा ऐसी हालत में रात्रिभोजन के त्याग न करनेवाला मांस के दोष से कैसे बच सकेगा ? इसलिए संयम की रुचि वालों को रात्रिभोजन का त्याग अवश्य कर देना चाहिए। यदि अपनी शक्ति हो तो चारों प्रकार के आहार का त्याग करें, अन्यथा अन्नाहार का त्याग तो अवश्य ही कर देना चाहिए । रात्रिभोजन त्याग की महिमा बताते हुए आचार्य वीरनन्दी तो इसे छठवाँ अणुव्रत तक कहेंगे। वे लिखेंगे कि - " श्रावक को अहिंसा व्रत का पालन करने के लिए रात्रिभोजनत्याग नाम का छठा अणुव्रत भी अवश्य पालना चाहिए। रात्रिभोजन त्याग के बिना अहिंसा आदि व्रतों की रक्षा नहीं हो सकती; क्योंकि रात्रि में हिंसा अवश्यंभावी है।" क र रात्रिभोजन नामक छठवीं प्रतिमा के सिवाय रात्रिभोजन त्याग की चर्चा किसी भी प्रकरण में आयी हो, उसे केवल सामान्य श्रावक के मूलगुणों में ही मानना चाहिए। रात्रिभोजनत्याग की चर्चा छठवीं प्रतिमा में भी आती है, वहाँ सम्पूर्ण अतिचारों एवं कृत कारित अनुमोदना के त्यागपूर्वक रात्रिभोजन त्याग की बात | है । सामान्य रात्रिभोजन का त्याग तो अष्ट मूलगुणों में ही हो जाता है। इस प्रारंभिक भूमिका में अन्नाहार अ एवं मिष्ठान्न के खाने व बनाने के त्याग की मुख्यता है । इस भूमिका में पानी, औषधि, लोंग, इलायची भि आदि के त्याग को शामिल नहीं किया है । अभिनन्दननाथ की धर्मसभा में वज्रनाभि आदि १०३ गणधर विराजते थे । लाखों मुनि - आर्यिकायें थीं। सोलह हजार केवली भगवन्त वहाँ विराजते थे । ती र्थं भगवान अभिनन्दन स्वामी ने धर्म की वर्षा करते-करते लाखों-करोड़ों वर्षों तक अनिच्छा से भरत क्षेत्र में विहार किया । भरतक्षेत्र के भव्य जीवों को धर्म प्राप्त कराने के पश्चात् अभिनन्दन परमात्मा सम्मेदाचल पर पधारे। EF न न्द न ना थ पर्व
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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