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रात्रि में श्राद्ध नहीं करना चाहिए; क्योंकि रात्रि को राक्षसी माना गया है। न केवल रात्रि बल्कि सूर्यास्त | || व सूर्योदय के समय दोनों संध्याओं के संधिकाल में भी श्राद्ध व भोजन नहीं करना चाहिए; क्योंकि यह समय भी रात्रि के निकट होने से रात्रि के दोष से दूषित होने लगता है। और भी देखिए युधिष्ठिर को संबोधित करते हुए कहा कहा है -
नोदकमपि पातव्यं, रात्रौ अपि युधिष्ठिरः।
तपस्विनां विशेषेण, गृहणां च विवेकनां।।' हे युधिष्ठिर ! रात्रि में आहार की तो बात ही क्या है, पानी भी नहीं पीना चाहिए।
मद्य मांसाशनं रात्रौ, भोजनं कन्द भक्षणम् ।
ये कुर्वन्ति वृथा तेषां, तीर्थयात्रा जपस्तपः।। जो मनुष्य मद्य पीते हैं, मांस खाते हैं, रात्रि को भोजन करते हैं एवं जमीकन्द खाते हैं, उनके साथ जपतप तीर्थ यात्रादि करना व्यर्थ है। ___इसप्रकार सभी जैन व जैनेतर धर्मशास्त्रों में मद्य-मांस-मधु व कन्दमूल आदि को तामसिक आहार माना है तथा हिंसामूलक होने से सर्वथा त्याज्य कहा है। फिर भी न जाने क्यों जैनेतर लोगों में सांयकालीन भोजन को रात में खाने की ही परम्परा है। लगता है जैनों से अपनी अलग पहचान बनाने के लिए ऐसा हुआ हो। पर अफसोस की बात यह है कि कलिकाल में जैन भी अपनी पहचान खोते जायेंगे।
प्रश्न - यहाँ यदि कोई कहे कि आपको यहाँ मूलगुणों के वर्णन में रात्रिभोजन के त्याग का उपदेश नहीं देना चाहिए, क्योंकि रात्रि भोजन का त्याग तो छठवीं प्रतिमा में होता है, फिर यहाँ इस सामान्य रहस्य के लिए यह उपदेश क्यों? १-२. विश्वविख्यात हिन्दूदर्शन का ग्रन्थ महाभारत
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