________________
GREEFFFFy
उत्तर - अरे भाई ! रात्रिभोजन में धर्म की हानि, स्वास्थ्य की हानि एवं लोकनिंदा तथा सर्वज्ञ की आज्ञा का उल्लंघन जैसे अनेक दोष होने पर भी यदि तू रात्रि में ही खाने का दुराग्रह रखता है, सो ऐसा काम तीव्रराग के बिना संभव नहीं है और तीव्रराग स्वयं अपने आप में आत्मघातक होने से भावहिंसा है। जैसे अन्न का ग्रास व मांस का ग्रास समान नहीं है, उसीतरह दिन का भोजन व रात्रि का भोजन करना समान नहीं है। रात के भोजन में अनुराग विशेष है, अन्यथा बिना राग के इतना बड़ा खतरा कोई क्यों मोल लेता?
जब दिन में भोजन करना ही स्वास्थ्य एवं सुखी जीवन जीने के लिए पर्याप्त है तो रात्रि में भोजन का हठाग्रह क्यों ? जो रात में भोजन करता है, उसके व्रत, तप, संयम कुछ भी संभव नहीं है।
रात्रिभोजन का सबसे बड़ा एक दोष यह भी है कि इस काम में ही महिलाओं को रात के बारह-बारह बजे तक उलझा रहना पड़ता है। इससे खानेवालों के साथ बनानेवाली माता-बहिनों को धर्मध्यान, शास्त्रों का पठन-पाठन, तत्त्वचर्चा, सामायिक, जाप्य आदि सबकुछ छूट जाता है। इसकारण जैनधर्म के धारक रात्रि में भोजन नहीं करते - ऐसी ही सनातन रीति अबतक चली आई है।
एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि लोक में करोड़ों लोगों में यह बात प्रसिद्ध है कि जैनी रात में नहीं खाते । इसकारण जैनधर्म की प्रभावना भी बहुत है, फिर भी जो लोग रात में खाते हैं व जिनधर्म की उज्वल कीर्ति को मलिन करते हैं, ऐसा अनर्थ भी राग की तीव्रता के बिना संभव नहीं है। अतः जो रात में खाता है, वह निःसन्देह तीव्ररागी होने से महापापी है।
जैनेतर शास्त्रों में भी रात्रिभोजन के त्याग के उल्लेख मिलते हैं, इससे स्पष्ट है कि वैदिक संस्कृति में भी रात्रिभोजन वर्ण्य है।
रात्रौ श्राद्धं न कुर्वीत, राक्षसी कीर्तिता हिंसा। संध्ययोरूभयोश्चैव, सूर्येचैवाचिरोदिते ।।२८०।।'
ES NEF
१. विश्वविख्यात हिन्दूदर्शन का ग्रन्थ महाभारत